अजमेर, 8 मार्च (हि.स)। अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनवाने में सक्रिय भूमिका निभाने वाले और श्रीराम जन्मभूमि न्यास के कोषाध्यक्ष संत गोविंद देव गिरी महाराज ने कहा कि राम अपने पिता दशरथ वचन के कारण वनवास नहीं गए। दशरथ ने अपनी पत्नी कैकेयी को जो वचन दिया, वह राम पर लागू नहीं होता था। राम को यह पता था कि उनके पिता धर्म संकट में है, इसलिए उन्होंने स्वेच्छा से वनवास जाने का संकल्प लिया। पंचवटी में जब छोटा भाई भरत मिलने आया तो राम ने स्पष्ट तौर पर कहा कि मेरे वनवास के लिए कैकेयी को दोषी नहीं माना जाए। राम को यह पता था कि उनके वनवास जाने से अयोध्यावासी बेहद दुखी है, इसलिए उन्होंने स्वेच्छा से वनवास जाने की बात कही। संत गोविंद गिरी ने कहा कि राम ने अपने जीवन में जो मापदंड निर्धारित किए, आज हर भारतवासी को उन पर चलने का संकल्प लेना चाहिए। अब जब अयोध्या में भगवान राम बाल्यावस्था में विराजमान हो गए तो भारत की सनातन संस्कृति का महत्व और बढ़ जाता है। उल्लेखनीय है संत गोविंद गिरीजी इन दिनों पुष्कर प्रवास पर हैं। संत गोविंद देव गिरी महाराज पुष्कर स्थित ब्रह्मा सावित्री वेद विद्यापीठ के परिसर में राम से राष्ट्र तक विषय पर प्रवचन दे रहे हैं।
संत गोविंद गिरी के निर्देशन में ही देश के कई स्थानों पर वेद विद्यापीठ का संचालन हो रहा है। इन्हीं में से एक पुष्कर में भी है। इस विद्यापीठ में 115 विद्यार्थी वेदों का अध्ययन कर रहे हैं। यहां गुरुकुल पद्धति से सभी छात्रों को शिक्षा दी जाती है। वेद अध्ययन के अतिरिक्त छात्रों को अंग्रेजी, गणित और कम्प्यूटर की शिक्षा भी दी जा रही है। इस विद्यापीठ को जनसहभागिता से संचालित किया जा रहा है। विद्यापीठ में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को गोद लेने की भी व्यवस्था है। वेद विद्यालय से अध्ययन के बाद आज कई युवा देश विदेश में जाकर रामायण और भागवत कथा का वाचन कर रहे हैं। कहा जा सकता है कि ऐसे वेद विद्यापीठ सनातन संस्कृति को बढ़ाने में मददगार है।
देवनानी ने संत गोविंद गिरी जी से पाया आशीर्वाद
राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने शुक्रवार को अयोध्या से पुष्कर आए श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के कोषाध्यक्ष संत गोविंद गिरीजी से मुलाकात कर आशीर्वाद लिया।
देवनानी ने संत श्री गिरी का माला पहनाकर और शाल ओढ़ाकर अभिनंदन किया। देवनानी ने संत श्री गिरी को राजस्थान विधानसभा का कैलेंडर भेट किया। संत श्री गिरी ने देवनानी को श्री रामकथाम्रत पुस्तक की प्रति भेंट की।