सृष्टि का सार तत्व परमात्मा, असार को छोड़ें : स्वामी नारायणानन्द

मीरजापुर, 6 मार्च (हि.स.)। भागवत कथा के चौथे दिन बुधवार को विंध्य पर्वत की तलहटी पर बसे धनावल गांव में श्रीमद् भागवत कथा में स्वामी नारायणानन्द ने मानव जीवन को दिव्यता प्रदान करने वाली भागवत, भरतोपाख्यान एवं दुर्वासा ऋषि को भगवत् परायण भक्त के भक्ति की शक्ति का दर्शन कराया।

स्वामीजी ने धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जब-जब धरा पर अत्याचार, दुराचार, पापाचार बढ़ा है, तब-तब प्रभु का अवतार हुआ है। जब धरा पर मथुरा के राजा कंस के अत्याचार अत्यधिक बढ़ गए, तब धरती की करुण पुकार सुनकर श्रीहरि विष्णु ने देवकी माता के अष्टम पुत्र श्रीकृष्ण के रूप में ने जन्म लिया। इसी प्रकार त्रेता युग में लंकापति रावण के अत्याचारों से जब धरा डोलने लगी तब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने जन्म लिया।

उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ने गोपियों के घर से केवल माखन चुराया अर्थात सार तत्व को ग्रहण किया और असार को छोड़ दिया। प्रभु हमें समझाना चाहते हैं कि सृष्टि का सार तत्व परमात्मा है। इसलिए असार यानी संसार के नश्वर भोग पदार्थों की प्राप्ति में अपने समय, साधन और सामर्थ्य को अपव्यय करने की बजाए हमें अपने अंदर स्थित परमात्मा को प्राप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए। इसी से जीवन का कल्याण संभव है।