भागलपुर, 30 मार्च (हि.स.)। पाक-ए-रमजान माह के उन्नीसवें दिन शनिवार को पूरी दुनिया के साथ भागलपुर वासियों ने भी उन्नीसवां रोजा रख सेहरी सुबह 04 बजकर 25 मिनट पर खाकर आरंभ किया। तत्पश्चात पूरे दिन ऊपर वाले की इबादत करते हुए शाम 05.59 बजे इफ्तारी कर रात को तराबीह की नमाज पढ़ी और अपने मुल्क भारत के साथ राज्य और समाज में अमन-चैन के साथ खुशहाली की दुआ मांगी। उक्त आशय की जानकारी खानकाह-ए-पीर शाह दमड़िया के सज्जादानशीं सैयद शाह फकरे आलम हसन ने दी।
उन्होंने बताया कि अपने मुल्क भारत में इस बार मुबारक माह रमजान की शुरुआत 11 मार्च से हुई थी। इसके बाद रोजेदार 12 मार्च से रोजा लगातार रखते आ रहे हैं। शनिवार को रोजेदारों ने उन्नीसवें रोजे को संपन्न किया। सैयद शाह हसन ने कहा कि कुरआने-पाक की सूरह ”हूद” की तेईसवीं आयत (आयत नंबर-23) में जाहिर कर दिया गया है कि-”जो लोग ईमान लाए और नेक अमल किए और अपने परवरदिगार के आगे आजिजी (याचना) की, यही साहिबे-जन्नत (स्वर्ग के अधिकारी यानी पात्र) हैं। हमेशा इसमें (जन्नत में) रहेंगे।
उन्होंने कहा कि मजकूर आयत की रोशनी में उन्नीसवां रोजा बेहतरीन तरीक़े से समझा जा सकता है। ”नेक अमल” से मुराद है ऐसे काम जो पाकीजगी, परहेजगारी , इंसानियत और शरई उसूल के मुताबिक सब्र और सदाक़त की मिसाल हों। नेक अमल यानी सत्कर्म/सदाचार। ”परवरदिगार” से मुराद अल्लाह से है। सैयद हसन ने कहा कि ”आजिजी” का मतलब याचना/विनम्र निवेदन है। यानी जब रोजा रखने वाला शख़्स या रोजादार अल्लाह पर ईमान रखकर नेक अमल (जैसे सच बोलना, ईमानदारी की कमाई से ही रोटी खाना, जरूरतमंदों की मदद करना, यतीम बच्चों की परवरिश करना, विधवाओं, अंपगों, अपाहिजों, नाबीना यानी दृष्टिहीनों की मदद करना, भूले-भटके को सही रास्ता दिखाना, अमानत में खयानत नहीं करना, ग़ैरकानूनी तरीके से दौलत नहीं कमाना, शराब नहीं पीना, जुआ-सट्टा नहीं खेलना, जिना यानी व्यभिचार नहीं करना, बीमारों की मिजाजपुर्सी करना, मां-बाप, बुजुर्गों की ताजीम या सम्मान करना, अल्लाह को दिल से याद करना और ग़ुरुर यानी घमंड नहीं करना है तो मगफिरत के अशरे में अठारहवें रोजे तक आते-आते तो खुद रोजादार का रोजा उसके लिए जन्नत (स्वर्ग) का फरियादी हो जाता है।
उन्होंने कहा कि पहले रोजे से शुरू हुआ नेक अमल का सिलसिला अठारहवें रोजे तक परहेजगारी का क़ाफिला बन जाता है। यानी उन्नीसवां रोजा मगफिरत का पयाम और नेकी का निजाम है।