
नवरात्रि का समापन नवमी तिथि की पूजा के साथ होता है। इस पावन अवसर पर देश भर के मंदिरों और घरों में माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है। इसी क्रम में आज हम आपको हिमाचल प्रदेश के एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ—चिंतपूर्णी देवी मंदिर—की कथा बताएंगे, जो अपने चमत्कारी प्रभावों के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। मान्यता है कि देवी सती ने यहां कन्या रूप में दर्शन दिए थे और यह स्थान भक्तों की हर चिंता का निवारण करता है।
चिंतपूर्णी मंदिर: जहां हर चिंता समाप्त होती है
हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में स्थित यह मंदिर धौलाधार पर्वत श्रृंखला की गोद में बसा है। प्रकृति की सुंदरता और आध्यात्मिक ऊर्जा का यह अद्भुत संगम श्रद्धालुओं को एक विशेष अनुभूति प्रदान करता है। नवरात्रि के दिनों में यहां हजारों श्रद्धालु देवी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। भीड़ की संख्या को देखते हुए सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किए जाते हैं और विशेष श्रेणी के दर्शन के लिए टिकट की व्यवस्था भी रहती है।
यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के पांच प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है:
- चामुंडा देवी – जो बुरी शक्तियों का नाश करती हैं
- ज्वाला देवी – जो दिव्य ज्वालाओं से मनोकामनाएं पूरी करती हैं
- नैना देवी – जिनके दर्शन से नेत्र रोग समाप्त होते हैं
- कालीबाड़ी मंदिर (शिमला) – जो रहस्यमयी शक्तियों का जागरण करती हैं
- चिंतपूर्णी देवी – जो भक्तों की हर चिंता हर लेती हैं
चिंतपूर्णी देवी का छिन्नमस्तिका रूप
यह मंदिर देवी सती के छिन्नमस्तिका स्वरूप के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां माता की पिंडी स्वरूप में स्थापना की गई है और मंदिर में अखंड ज्योति निरंतर प्रज्वलित रहती है। इस ज्योति से तिलक लगवाना अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर में सती के चरण अंग गिरे थे और यह स्थान 51 शक्तिपीठों में से एक है।
मां ज्वाला देवी का चमत्कारी शक्तिपीठ
चिंतपूर्णी के समान ही हिमाचल में एक और प्रसिद्ध शक्तिपीठ है—मां ज्वाला देवी मंदिर। यह मंदिर अपनी 9 दिव्य ज्वालाओं के लिए जाना जाता है, जो बिना किसी ईंधन के निरंतर जलती रहती हैं। इन्हें देवी के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है: महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजनी देवी।
पौराणिक कथा: अकबर और भक्त ध्यानू की कथा
मां ज्वाला देवी के चमत्कारों से मुग़ल बादशाह अकबर भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। एक बार उन्होंने मंदिर की शक्तियों को परखने के लिए भक्त ध्यानू को चुनौती दी। कथा है कि ध्यानू ने अपने घोड़े का सिर काटकर माता के सामने रख दिया और माता की कृपा से सिर वापस जुड़ गया। इससे अकबर चकित रह गया। बाद में अकबर ने माता को सोने का छत्र अर्पित किया, लेकिन माता ने वह छत्र स्वीकार नहीं किया और वह किसी अज्ञात धातु में परिवर्तित हो गया। आज भी यह छत्र मंदिर परिसर में रखा है और इसकी रचना आज तक विज्ञान के लिए रहस्य बनी हुई है।
सारांश
चिंतपूर्णी और ज्वाला देवी मंदिर केवल श्रद्धा के केंद्र नहीं, बल्कि भारत की आस्था, संस्कृति और शक्ति का जीवंत प्रतीक हैं। इन मंदिरों की मान्यताएं, पौराणिक गाथाएं और चमत्कारी घटनाएं हर श्रद्धालु को आंतरिक शांति और आत्मिक बल प्रदान करती हैं। हिमाचल की वादियों में स्थित ये शक्तिपीठ आज भी हजारों भक्तों की मनोकामनाएं पूरी कर रहे हैं और सनातन संस्कृति की दिव्यता को जीवंत बनाए हुए हैं।
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