
नवरात्रि के पावन दिनों में देवी मंदिरों के दर्शन को अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है। ऐसे ही एक प्राचीन और चमत्कारी शक्तिपीठ की बात करें तो उज्जैन स्थित हरसिद्धि माता मंदिर का नाम प्रमुखता से आता है। मान्यता है कि यही वह स्थान है जहां देवी सती की कोहनी गिरी थी। यही कारण है कि यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है और इसकी चर्चा पुराणों में भी मिलती है।
पौराणिक महत्व
हरसिद्धि माता मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि जब चंड और मुंड नामक दैत्यों ने कैलाश पर आक्रमण किया, तो भगवान शिव ने चंडी देवी का स्मरण किया। देवी ने दैत्यों का वध किया और प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें हरसिद्धि नाम दिया। तभी से उज्जैन में यह शक्तिपीठ स्थापित हुआ।
नवरात्रि में विशेष आयोजन
नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में विशेष पूजा, हवन और अनुष्ठानों का आयोजन होता है। सुबह से रात तक भक्तों की भीड़ उमड़ती है। पूरे मंदिर को भव्य रूप से सजाया जाता है, दीवारों पर रंग-बिरंगी विद्युत सज्जा और देवी की सजीव मूर्ति आस्था का अद्भुत अनुभव कराती है।
यह समय देवी से आशीर्वाद प्राप्त करने का श्रेष्ठ अवसर माना जाता है। “ॐ जयन्ती मंगला काली…” और “ॐ गिरिजाय च विद्महे…” जैसे मंत्रों की गूंज मंदिर परिसर को दिव्यता से भर देती है।
मंदिर की विशेषता: दीप स्तंभ
हरसिद्धि माता मंदिर की एक अनोखी विशेषता इसके दो प्राचीन दीप स्तंभ हैं, जिनकी ऊंचाई लगभग 51 फीट है। इन पर एक बार में 1,011 दीपक जलाए जाते हैं। इस प्रक्रिया में लगभग 4 किलो रूई और 60 लीटर तेल का उपयोग होता है। मान्यता है कि इन दीप स्तंभों का निर्माण सम्राट विक्रमादित्य ने करवाया था, जिनका काल लगभग दो हजार वर्ष पूर्व का माना जाता है।
गर्भगृह और पूजा विधि
रात्रि में मंदिर के पट बंद होने के बाद भी विशेष पर्वों के अवसर पर गर्भगृह में वेदोक्त मंत्रों और श्रीसूक्त के साथ तांत्रिक विधि से पूजा की जाती है। यह पूजा न केवल आध्यात्मिक शांति देती है, बल्कि आत्मबल भी बढ़ाती है। मंदिर प्रशासन ने सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस बल और सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं, जिससे हर भक्त यहां सुरक्षित और शांति से पूजा कर सके।
मंदिर का वास्तु और परिसर
हरसिद्धि मंदिर के चार भव्य प्रवेश द्वार हैं। दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित बावड़ी के भीतर एक स्तंभ और श्रीयंत्र बना हुआ है, जो आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। मंदिर के सामने स्थित दीप स्तंभ नवरात्रि के दौरान पांच दिनों तक विशेष रूप से दीपों से सजाए जाते हैं।
दर्शन का श्रेष्ठ समय
हालांकि श्रद्धालु वर्षभर यहां आ सकते हैं, लेकिन अक्टूबर से जून का समय दर्शन के लिए उपयुक्त माना जाता है। विशेषकर चैत्र और आश्विन नवरात्रि के दौरान यहां भव्य धार्मिक आयोजन होते हैं और रात्रि की आरती का दृश्य अत्यंत मनोहारी होता है।