मंदसौर, 6 नवंबर (हि.स.)। मंदसौर जिला चिकित्सालय में अब एसडीपी मशीन लगाई जाएगी। इसके लिए सांसद सुधीर गुप्ता ने बुधवार को अपनी निधि से राशि स्वीकृत की है।
शहर में डेंगू, मलेरिया सहित अन्य गंभीर रोग इस समय काफी फैला हुआ है। जान बचाने के लिए रोगियों को भारी मात्रा में ब्लड प्लेटलेट्स की जरूरत पड़ रही है। लेकिन, ब्लड बैंक में अभी भी पुरानी तकनीकी (ब्लड कंपोनेंट सेप्रेशन) का इस्तेमाल कर खून से प्लेटलेट्स निकाला जा रहा था। जिसमें घंटों बर्बाद होने के साथ ही काफी ज्यादा डोनरों की जरूरत पड़ रही है। अब यहां प्लेटलेट्स एफेरेसिस मशीन (एसडीपी) लग जाने से इन सारी परेशानियों से निजात मिल जाएगी और कई गंभीर रोगियों की जान बचाई जा सकेगी। इस मशीन के होने से रोगियों की तेज रिकवरी होगी और एक ब्लड डोनर करीब पांच डोनरों के बराबर उपयोग में लाया जाएगा। एसडीपी मशीन की सुविधा शुरू होने से गरीब व मजदूर मरीजों को एसडीपी निशुल्क मिल सकती है और मरीजों को काफी राहत मिल सकती है।
इस मशीन के लग जाने से सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (एसडीपी) विधि से अब एक ही डोनर से मरीज की जरूरत के अनुसार प्लेटलेट्स निकालना संभव होगा। पहले इसके लिए तीन से चार डोनर का ब्लड लिया जाता था। फिर प्लेटलेट्स अलग किया जाता था। इस प्रक्रिया में ब्लड के जरिए एक घंटे में प्लेटलेट्स निकलता है। डोनर के शरीर से ब्लड निकालकर मशीन में ले जाया जाता है। वहां से प्लेटलेट्स अलग होकर मरीज के शरीर तक पहुंचता है और बाकि ब्लड दोबारा डोनर के शरीर में पहुंचाया जाता है। खास बात यह भी है कि प्लेटलेट्स देने वाला व्यक्ति 72 घंटे बाद दोबारा प्लेटलेट्स दे सकता है।
50 से 60 हजार तक प्लेटलेट्स बढ़ता है
इस विधि से प्लेटलेट्स चढ़ाने से मरीज में 50 से 60 हजार तक प्लेटलेट्स बढ़ता है। अब तक ब्लड निकालने के बाद रैंडम डोनर प्लेटलेट्स (आरडीपी) विधि से प्लेटलेट्स निकाला जाता था। इसमें कम से कम छह घंटे लगते हैं। एक बार रक्तदान करने के बाद तीन माह बाद दे फिर से रक्तदान किया जा सकता था। एक यूनिट आरडीपी चढ़ाने पर सिर्फ पांच हजार प्लेटलेट्स काउंट बढ़ते हैं। इस वजह से कई यूनिट प्लेटलेट्स चढ़ाने पड़ते थे।
सांसद सुधीर गुप्ता ने प्लेटलेट्स कि बढ़ती मांग को देखते हुए अधिकारियों से वार्ता कि और इस अत्याधुनिक मशीन के लिए तत्काल राशि स्वीकृत की। इस अत्याधुनिक मशीन आने से मरीजों को समय के साथ पैसों से भी काफी राहत मिलेगी। प्लेटलेट्स का यूज सिर्फ डेंगू मरीजों में ही नहीं बल्कि और भी कई गंभीर बीमारियों में होता है।