
वक्फ संशोधन विधेयक 2025 के संसद से पारित होने के बाद इसके राजनीतिक प्रभाव सामने आने लगे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने जहां इस विधेयक के माध्यम से अपने एक प्रमुख एजेंडे को आगे बढ़ाया है, वहीं इसके नकारात्मक असर की आंच एनडीए के सहयोगी दल जनता दल (यूनाइटेड) तक पहुंची है। जद-यू के कई मुस्लिम नेता पार्टी से दूरी बना रहे हैं और अब तक पांच नेताओं ने इस्तीफा दे दिया है। सूत्रों के मुताबिक, आने वाले दिनों में और भी मुस्लिम नेता और कार्यकर्ता पार्टी छोड़ सकते हैं।
बिहार में सियासी समीकरण बदलने की आशंका
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले यह स्थिति जद-यू के लिए संकट का कारण बन सकती है। राज्य में कई विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। अब तक मुस्लिम समाज का एक बड़ा वर्ग नीतीश कुमार का समर्थन करता रहा है, लेकिन मुस्लिम नेताओं के लगातार इस्तीफों से यह समर्थन कमजोर हो सकता है। विपक्षी पार्टियां इस मौके को भुनाने की तैयारी में हैं और वक्फ बिल को लेकर नीतीश कुमार की भूमिका को निशाने पर ले रही हैं।
विपक्ष का आरोप: नीतीश भी उतने ही जिम्मेदार
विपक्ष का कहना है कि इस विधेयक को पास कराने में जितनी जिम्मेदारी भाजपा की है, उतनी ही भूमिका नीतीश कुमार की भी रही है। लोकसभा और राज्यसभा में जद-यू और चंद्रबाबू नायडू की पार्टी तेदेपा के समर्थन से ही यह विधेयक पारित हो सका। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने नीतीश से इस विधेयक का विरोध करने की अपील की थी, लेकिन उन्होंने समर्थन दिया।
इन नेताओं ने दिया इस्तीफा
विधेयक पारित होने के बाद सबसे पहले राजू नैयर ने पार्टी से इस्तीफा दिया। इसके बाद तबरेज सिद्दीकी अलीग, मोहम्मद शाहनवाज मलिक, मोहम्मद कासिम अंसारी और नदीम अख्तर ने भी पार्टी से नाता तोड़ लिया। राजू नैयर ने अपने पत्र में लिखा कि वह वक्फ संशोधन विधेयक के समर्थन से बेहद आहत हैं और इसे मुसलमानों के अधिकारों के खिलाफ बताते हुए पार्टी छोड़ रहे हैं।
पार्टी की सफाई और डैमेज कंट्रोल
इन इस्तीफों के बाद जद-यू डैमेज कंट्रोल में जुट गई है। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि इस्तीफा देने वाले कुछ सदस्य संगठन में किसी पद पर नहीं थे और ये इस्तीफे फर्जी हैं। उन्होंने दावा किया कि पार्टी पूरी तरह से एनडीए के फैसले के साथ है और यह विधेयक गरीब मुसलमानों के हित में है।
सुझावों की अनदेखी से नाराजगी
जद-यू के वरिष्ठ नेता गुलाम रसूल बलियावी और बिहार शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष सैयद अफजल अब्बास ने कहा कि विधेयक पारित करते समय समुदाय के नेताओं द्वारा दिए गए कई महत्वपूर्ण सुझावों को नजरअंदाज कर दिया गया। दोनों नेताओं ने मसौदा तैयार करने के दौरान संयुक्त संसदीय समिति के सामने कई सुझाव रखे थे, लेकिन उन्हें शामिल नहीं किया गया। हालांकि, उन्होंने पार्टी नेतृत्व की सीधे आलोचना नहीं की।
बाजार में जारी होंगे 10 और 500 रुपए के नए नोट, अब पुराने नोटों का क्या होगा? विस्तार से जानिए