
कभी बाढ़ और बालू की मोटी परत से प्रभावित खेत अब मक्के की लहलहाती फसलों से भर गए हैं। बिहार में कुसहा दुर्घटना के बाद सैकड़ों एकड़ जमीन बंजर हो गई थी, जहां सिर्फ कांस और पलास जैसी झाड़ियां उगती थीं। लेकिन आज, किसानों की मेहनत और सरकारी योजनाओं के सहयोग से यह इलाका फिर से हरा-भरा हो गया है। अब यहां मक्का के साथ-साथ कई अन्य फसलों की भी खेती हो रही है।
बंजर जमीन को बनाया उपजाऊ
2008 की बाढ़ ने किसानों की फसलों और खेतों को पूरी तरह तबाह कर दिया था।
- खेतों में 8 फीट तक बालू की परत जम गई थी, जिससे खेती करना असंभव लग रहा था।
- लेकिन किसानों ने लगातार मेहनत करके इस जमीन को फिर से खेती के योग्य बना दिया।
- आज यही खेत मक्के की उत्कृष्ट फसल दे रहे हैं और किसानों की आर्थिक रीढ़ बन चुके हैं।
मक्का की खेती से बढ़ी आमदनी
- एक एकड़ मक्का की खेती में लगभग 20 से 25 हजार रुपये की लागत आती है।
- प्रति एकड़ उपज से किसानों को 65 से 70 हजार रुपये तक की आय हो रही है।
- यानी प्रत्येक एकड़ पर करीब 50 हजार रुपये का शुद्ध लाभ किसान कमा रहे हैं।
- यह वही क्षेत्र है जो कभी बाढ़ के बाद किसी उपयोग में नहीं आने वाला माना जाता था।
सरकारी योजनाओं से मिला सहयोग
राज्य सरकार और कृषि विभाग ने किसानों को कई स्तरों पर सहयोग दिया:
- बीजों की गुणवत्ता और उपलब्धता पर विशेष निगरानी रखी गई।
- समय पर उर्वरक और तकनीकी सलाह दी गई।
- बाजार समिति के सहयोग से मूलभूत ढांचा तैयार किया गया ताकि किसान अपनी उपज का उचित मूल्य प्राप्त कर सकें।
- किसानों को अब बिक्री के लिए अच्छे बाजार और उचित दाम मिल रहे हैं।
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