
आज, 13 अप्रैल से हिंदू पंचांग का दूसरा महीना वैशाख शुरू हो गया है। इसी के साथ देशभर में बैसाखी पर्व की धूम देखने को मिल रही है। यह पर्व न केवल नई फसल की खुशी का प्रतीक है, बल्कि सिख धर्म में इसका विशेष धार्मिक महत्व भी है। बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना हुई थी, जिससे यह दिन ऐतिहासिक रूप से भी बेहद खास माना जाता है।
पंजाब में बैसाखी का उत्सव
पंजाब में यह पर्व बड़े उल्लास और जोश के साथ मनाया जाता है। खेतों में फसल पकने और घर आने की खुशी में लोग ढोल-नगाड़ों की थाप पर भांगड़ा और गिद्दा करते हैं। गुरुद्वारों में विशेष पाठ, भजन-कीर्तन और अमृत ग्रहण समारोह आयोजित किए जाते हैं। श्रद्धालु पंक्ति में बैठकर पांच बार अमृत का सेवन करते हैं, जो सिख परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
देश के अन्य हिस्सों में भी पर्व
बैसाखी सिर्फ पंजाब तक सीमित नहीं है। भारत के अलग-अलग हिस्सों में इसे अलग नामों से मनाया जाता है:
- असम में इसे बिहू के रूप में जाना जाता है।
- बंगाल में इस दिन नववर्ष (नबा वर्षा) की शुरुआत होती है।
- केरल में इसे पूरम विशु के रूप में मनाया जाता है।
इन क्षेत्रों में भी यह दिन नई शुरुआत, फसल की कटाई और प्रकृति के उत्सव के रूप में देखा जाता है।
सूर्य के राशि परिवर्तन से जुड़ी है शुरुआत
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिस दिन सूर्य मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करता है, उस दिन से वैशाख माह की शुरुआत होती है। यही कारण है कि इस बार 13 अप्रैल की रात सूर्य मेष राशि में प्रवेश कर रहे हैं, और इसी दिन को बैसाखी का पर्व मनाने के लिए उपयुक्त माना गया है। यह समय सौर नववर्ष की शुरुआत को भी दर्शाता है।
खालसा पंथ की स्थापना
इतिहास में इस दिन को विशेष महत्व इसलिए भी प्राप्त है क्योंकि सिख धर्म के दसवें गुरु, श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने इसी दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। यह एक नई धार्मिक और सामाजिक चेतना की शुरुआत थी, जिसका उद्देश्य था अन्याय के खिलाफ संघर्ष और सच्चाई की राह पर चलना।