‘न्यायालय को ब्याज दरें निर्धारित करने का अधिकार है…’ सुप्रीम कोर्ट ने 52 साल पुरानी कानूनी लड़ाई खत्म की

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (2 अप्रैल) को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि ब्याज दर क्या होनी चाहिए और इसका भुगतान कब से किया जाना है, यह तय करने का अधिकार कोर्ट को है ।  यह अधिकार प्रत्येक मामले के तथ्यों पर निर्भर करता है, जो डिक्री की तिथि को या उससे पहले , या ब्याज से छूट की तिथि को प्रदान किया जाएगा।

52 साल लंबी कानूनी लड़ाई

न्यायमूर्ति जे.बी.परदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने 52 साल लंबी कानूनी लड़ाई को समाप्त करते हुए अपने आदेश में यह टिप्पणी की। जिसमें राजस्थान सरकार बनाम   आई. के. मर्चेंट्स प्राइवेट लिमिटेड। शेयरों के मूल्यांकन को लेकर राज्य सरकार सहित निजी पक्षों के बीच विवाद था।

 

लागू ब्याज दरों में भी संशोधन किया गया है।

पीठ ने शेयर मूल्य के विलंबित भुगतान पर लागू ब्याज दरों में भी संशोधन किया। न्यायमूर्ति महादेवन ने 32 पृष्ठ के फैसले में कहा कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि अदालतों को कानून के अनुसार सभी तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उचित ब्याज दर निर्धारित करने का अधिकार है।

मामला क्या था ?

निजी फर्म ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध अपील दायर की। जिसमें मेसर्स रे एंड रे द्वारा रखे गए शेयरों का निर्गम मूल्य 640 रुपये प्रति शेयर रखा गया और पांच प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से साधारण ब्याज का भुगतान किया गया। जब निजी फर्म ने ब्याज दर में वृद्धि की मांग की तो राज्य सरकार ने इस दर को चुनौती दी।

 

यह मामला 1973 में दायर किया गया था।

1973 के इस विवाद में अपीलकर्ताओं ने राजस्थान राज्य खान एवं खनिज लि. के शेयर राज्य को हस्तांतरित कर दिए। सर्वोच्च न्यायालय ने भुगतान में देरी को ध्यान में रखते हुए आदेश दिया कि अपीलकर्ता ब्याज के रूप में उचित मुआवजे के हकदार हैं।