
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 6 अप्रैल को राम नवमी के अवसर पर भारत के पहले वर्टिकल लिफ्ट रेलवे सी ब्रिज, नए पंबन ब्रिज का उद्घाटन करेंगे। यह पुल रामेश्वरम को भारत की मुख्य भूमि से जोड़ता है और आधुनिक इंजीनियरिंग का एक उत्कृष्ट उदाहरण माना जा रहा है।
इस ब्रिज की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें ट्रेन और जहाज दोनों के आवागमन की सुविधा है। इसके लिए इसमें एक ऑटोमेटेड इलेक्ट्रो-मैकेनिकल लिफ्ट सिस्टम लगाया गया है, जो ब्रिज को 17 मीटर तक ऊपर उठा सकता है, जिससे बड़े जहाज आसानी से नीचे से गुजर सकें।
पंबन ब्रिज की संरचना और निर्माण
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यह पुल 2.08 किलोमीटर लंबा है और पुराने पुल की तुलना में 3 मीटर ऊंचा बनाया गया है।
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इसमें 99 स्पैन हैं और मुख्य लिफ्ट स्पैन की लंबाई 72.5 मीटर है।
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ब्रिज का निर्माण स्टेनलेस स्टील और पॉलीसिलोक्सेन पेंट से किया गया है, जो समुद्री पर्यावरण से बचाव करता है।
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इस सामग्री के कारण इसकी आयु लगभग 58 साल तक अनुमानित की गई है।
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पुल को डुअल रेलवे ट्रैक के साथ तैयार किया गया है, जिससे वंदे भारत जैसी आधुनिक ट्रेनें भी इस पर आसानी से चलाई जा सकेंगी।
इतिहास: 1911 में बना था पहला पंबन ब्रिज
पहला पंबन ब्रिज ब्रिटिश काल में 1911 में बनकर तैयार हुआ था और इसे 1914 में आम यातायात के लिए खोला गया था। यह भारत का पहला समुद्री रेल पुल था और इसे श्रीलंका के साथ व्यापारिक संपर्क को मजबूत करने के उद्देश्य से बनाया गया था।
पुराने समय में धनुषकोडी से श्रीलंका के तलाइमन्नार तक जहाज चला करते थे। लेकिन 1962 के चक्रवात में धनुषकोडी पूरी तरह से तबाह हो गया और तब से वह क्षेत्र निर्जन बना हुआ है।
1964 की आपदा और बड़ा हादसा
23 दिसंबर 1964 की रात एक भीषण समुद्री तूफान (सुनामी) ने पंबन द्वीप को अपनी चपेट में ले लिया था। उस समय 653 नंबर की धनुषकोडी यात्री ट्रेन पंबन ब्रिज पार कर रही थी, जो पूरी की पूरी समुद्र में बह गई।
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अगली सुबह केवल ट्रेन का इंजन पानी से बाहर दिखाई दिया।
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इस दुर्घटना में 100 से 250 लोगों की मौत हुई थी।
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हालांकि, पुराना ब्रिज खड़ा रहा, लेकिन 146 में से 126 स्पैन और दो स्तंभ बर्बाद हो गए थे।
ई श्रीधरन की भूमिका: फिर से जीवन मिला पुल को
जब इस पुल को फिर से चालू करने का सवाल उठा, तब भारतीय रेलवे ने इसे बनाने से मना कर दिया था। लेकिन उत्तर भारत के सांसदों के दबाव में इसे बहाल करने का निर्णय लिया गया।
इस कार्य का श्रेय देश के प्रसिद्ध इंजीनियर ई श्रीधरन को जाता है। उन्होंने स्थानीय मछुआरों की मदद से समुद्र में डूबे 126 गर्डरों को खोजा और कुछ ही दिनों में पुल को फिर से तैयार कर दिया। यह कार्य उनकी इंजीनियरिंग दक्षता का एक बेहतरीन उदाहरण बन गया।
2019 में रखी गई नए ब्रिज की नींव
नए पंबन ब्रिज की नींव 2019 में रखी गई थी। इसका निर्माण आधुनिक तकनीक, सुरक्षा मानकों और भविष्य की रेल यातायात आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए किया गया है।
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