छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच मुठभेड़, 16 उग्रवादी ढेर

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में शनिवार को सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच हुई मुठभेड़ में कम से कम 16 माओवादी मारे गए। पुलिस के अनुसार, यह संख्या बढ़ सकती है क्योंकि मुठभेड़ अब भी जारी थी। बीते कुछ महीनों में सुरक्षा बलों ने माओवादियों के खिलाफ अभियान तेज कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप सैकड़ों उग्रवादी मारे जा चुके हैं।

सुकमा जिले के पुलिस अधीक्षक पी. सुंदरराज ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, “अब तक हमें 16 माओवादियों के शव मिले हैं, और संख्या बढ़ने की संभावना है।” सुरक्षाबलों ने माओवादियों के ठिकानों पर छापेमारी कर भारी मात्रा में रॉकेट लॉन्चर, ग्रेनेड लॉन्चर, असॉल्ट राइफलें और अन्य हथियार बरामद किए हैं।

माओवादी आंदोलन का सिकुड़ता प्रभाव

भारत में माओवादी विद्रोह दशकों से जारी है, जिसमें अब तक 10,000 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। नक्सली इसे समाज के हाशिए पर खड़े गरीबों की लड़ाई बताते हैं और स्थानीय लोगों के अधिकारों, जमीन और संसाधनों के लिए संघर्ष करने का दावा करते हैं। माओवादियों का प्रभाव सबसे अधिक “लाल गलियारे” में देखा गया था, जो देश के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों तक फैला हुआ था।

2000 के दशक के शुरुआती वर्षों में, माओवादियों की ताकत तेजी से बढ़ी थी और उस समय उनकी संख्या 15,000 से 20,000 के बीच मानी जाती थी। हालांकि, सरकारी कार्रवाई और सुरक्षा बलों की बढ़ती मौजूदगी के चलते अब छत्तीसगढ़ में इनकी संख्या घटकर 3,000-4,000 तक रह गई है।

सरकार की सख्त कार्रवाई और बदलाव

बीते वर्षों में भारत सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए व्यापक अभियान चलाया है। गृहमंत्री अमित शाह ने 31 मार्च 2026 तक माओवादी समस्या को पूरी तरह समाप्त करने की समयसीमा तय की है। इस रणनीति के तहत दसियों हजार सुरक्षाबलों को प्रभावित क्षेत्रों में तैनात किया गया है, पुलिस थानों की संख्या बढ़ाई गई है, और साथ ही विकास कार्यों को भी प्राथमिकता दी गई है।

सड़क, बिजली, स्वास्थ्य केंद्र और सुरक्षाबलों की मौजूदगी ने स्थानीय लोगों को माओवादियों के प्रभाव से बाहर निकलने में मदद की है। पिछले साल, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, माओवादियों के खिलाफ चलाए गए अभियानों में 287 उग्रवादी मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश छत्तीसगढ़ में मारे गए थे।

सिमट रहा है नक्सली प्रभाव

स्थानीय पत्रकार नरेश मिश्रा, जो वर्षों से नक्सल आंदोलन को कवर कर रहे हैं, ने बताया कि सरकारी अभियानों से माओवादियों का प्रभाव तेजी से घटा है। “अब इसे भय कहिए या सरकार में बढ़ता भरोसा, लेकिन स्थानीय लोग माओवादियों के प्रभाव से बाहर आ रहे हैं। पुलिस भी उन्हें सहयोग दे रही है,” उन्होंने कहा।

बीते ढाई वर्षों में ही छत्तीसगढ़ में 40 से अधिक सुरक्षा कैंप स्थापित किए गए हैं, जिससे स्थानीय लोगों में सुरक्षा की भावना बढ़ी है और माओवादियों की पकड़ कमजोर हुई है।

मिश्रा के अनुसार, फिलहाल सुकमा, नारायणपुर और बीजापुर में माओवादियों का सबसे ज्यादा प्रभाव है, जबकि कांकेर, दंतेवाड़ा, गरियाबंद और राजनांदगांव में उनकी पकड़ कमजोर पड़ी है। वहीं, कोंडागांव और बस्तर पूरी तरह नक्सल प्रभाव से मुक्त हो चुके हैं।

माओवादी हमलों में सुरक्षाबलों को भी नुकसान

हालांकि, माओवादियों के खिलाफ जारी अभियानों में सुरक्षाबलों को भी नुकसान उठाना पड़ा है। जनवरी 2025 में एक आईईडी हमले में नौ सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे। इससे पहले 2010 में, छत्तीसगढ़ के जंगलों में घात लगाकर किए गए हमले में 76 अर्धसैनिक बलों की मौत हुई थी, जो अब तक माओवादियों के किसी एक हमले में हुई सबसे बड़ी क्षति थी।

सरकार की ओर से बढ़ते अभियानों और सुरक्षा व्यवस्था के सुदृढ़ होने से माओवादी गतिविधियों में गिरावट देखी जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरी बार सत्ता में आने के बाद माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई और तेज कर दी गई है। इस साल अब तक 110 से अधिक माओवादी मारे जा चुके हैं। मार्च 2025 में ही दो अलग-अलग मुठभेड़ों में 30 माओवादियों को ढेर किया गया, जबकि फरवरी में एक दिन में 32 माओवादी मारे गए थे।

सरकार की सख्ती और सुरक्षाबलों की बढ़ती मौजूदगी से यह साफ है कि आने वाले वर्षों में माओवादी आंदोलन और कमजोर होता जाएगा।