क्या व्यक्तिगत ऋण की ब्याज दरें कम होंगी? अगले हफ्ते रेपो रेट पर बड़ा फैसला लेगा RBI

क्या व्यक्तिगत ऋण की ब्याज दरें कम होंगी? अगले हफ्ते रेपो रेट पर बड़ा फैसला लेगा RBI
क्या व्यक्तिगत ऋण की ब्याज दरें कम होंगी? अगले हफ्ते रेपो रेट पर बड़ा फैसला लेगा RBI

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अगले हफ्ते रेपो रेट पर अहम फैसला लेने जा रहा है, जिसका सीधा असर पर्सनल लोन, होम लोन और कार लोन की ब्याज दरों पर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि आरबीआई रेपो रेट में कटौती कर सकता है, जिससे बैंकों को कर्ज देने में आसानी होगी और उपभोक्ताओं को भी कम ब्याज दर पर कर्ज मिलने का फायदा मिलेगा।

रेपो दर में कटौती की संभावना

इस वर्ष फरवरी में आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ने रेपो दर को 0.25 प्रतिशत घटाकर 6.25 प्रतिशत कर दिया था, जो पिछले 5 वर्षों में पहली कटौती थी। सिटीबैंक के ताजा अनुमान के मुताबिक, आरबीआई 7 से 9 अप्रैल को होने वाली अपनी अगली बैठक में दरों में 0.25 फीसदी की और कटौती कर सकता है। इसके अलावा, बैंक ऑफ अमेरिका ग्लोबल रिसर्च का अनुमान है कि 2025 के अंत तक रेपो रेट 5.5 फीसदी तक पहुंच सकती है। इसका मतलब है कि फरवरी में हुई 0.25 फीसदी की कटौती समेत इस साल कुल 1 फीसदी (100 आधार अंक) की कटौती हो सकती है।

रेपो दर क्या है?

रेपो दर वह दर है जिस पर आरबीआई सरकारी प्रतिभूतियों के बदले वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण प्रदान करता है। वर्तमान में यह दर 6.25 प्रतिशत है। यदि रेपो दर कम हो जाती है, तो बैंकों को कम लागत पर धन मिलता है, जिसे वे कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराकर ग्राहकों तक पहुंचाते हैं।

ग्राहकों को क्या लाभ होगा?

बैंकों को जिस लागत पर धन मिलता है, उसमें रेपो दर प्रमुख भूमिका निभाती है। यदि रेपो दर अधिक है तो बैंकों की लागत बढ़ जाती है और यदि यह कम है तो लागत कम हो जाती है। यदि आरबीआई रेपो दर में कटौती करता है तो बैंक सस्ते ऋण उपलब्ध करा सकेंगे। इससे होम लोन, कार लोन और पर्सनल लोन की ईएमआई कम हो जाएगी, जो ग्राहकों के लिए बड़ी राहत होगी।

विशेषज्ञ की राय

विशेषज्ञों के अनुसार, कम मुद्रास्फीति और नियंत्रित मूल्य दबाव को देखते हुए, आरबीआई के पास रेपो दर में कटौती करने की पर्याप्त गुंजाइश है। यदि यह कटौती होती है, तो ऋण ब्याज दरों में महत्वपूर्ण राहत मिलेगी, जिससे आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलेगा। बाजार की नजर आगामी निर्णय पर रहेगी, क्योंकि इसका बैंकिंग क्षेत्र के साथ-साथ ऋण ग्राहकों पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा।