मध्य प्रदेश में बाघों की मौत का सिलसिला जारी है। मंडला जिले के गिट्टी टोला क्षेत्र में स्थित कान्हा टाइगर रिजर्व से एक बार फिर दुखद घटना सामने आई है। लगभग 18 महीने की मादा बाघिन का शव मिलने से यहां हड़कंप मच गया है। यह बाघिन पिछले दो दिनों से रिहायशी इलाकों में घूम रही थी। सूचना मिलते ही वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची और शव को बरामद किया। फिलहाल बाघिन की मौत के कारणों की जांच की जा रही है।
कान्हा टाइगर रिजर्व को मध्य प्रदेश का गौरव माना जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में यहां बाघों की मौतों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय बन गई है। वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व और शहडोल वन वृत्त में 2021 और 2023 में कुल 43 बाघों की मौत हुई, जो अब तक की सबसे अधिक संख्या है। इससे पहले 2022 में 34, 2021 में 41 और 2020 में 46 बाघों की मौत की सूचना मिली थी। 2012 से 2024 के बीच राज्य में कुल 355 बाघों की मौत हो चुकी है, जिससे वन्यजीव संरक्षण के लिए गंभीर चुनौती पेश हो रही है।
इससे पहले बाघिन टी-58 की मौत हो गई थी।
2024 की बाघ गणना के अनुसार, कान्हा टाइगर रिजर्व में वर्तमान में 115 वयस्क बाघ और 30 शावक हैं। लेकिन पिछले दो महीनों में बाघों की लगातार मौतों ने चिंता बढ़ा दी है। इससे पहले 29 जनवरी को मुक्की बीट के परसाटोला इलाके में दो साल की मादा बाघिन का शव मिला था, जिसकी जांच अभी भी जारी है। वहीं, 18 फरवरी को चिमटा कैंप के राजा कछार में बाघिन टी-58 को मार दिया गया था।
मृत्यु का कारण अभी तक घोषित नहीं किया गया है।
बाघ की मौत का कारण – अवैध शिकार, अंतरजातीय संघर्ष या बीमारी – अभी तक स्पष्ट नहीं है, लेकिन इन घटनाओं ने वन विभाग की कार्यप्रणाली और निगरानी प्रणाली पर सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं। मामले की जानकारी देते हुए डीएफओ ऋषिभा सिंह का कहना है कि हम हर बाघ की मौत की जांच कर रहे हैं और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर ही कोई निष्कर्ष निकाला जाएगा। मध्य प्रदेश में वन्य प्राणियों के अवैध शिकार को रोकने के लिए राज्य स्तरीय टाइगर फोर्स और क्षेत्रीय टाइगर स्ट्राइक फोर्स, वन विभाग, स्पेशल टाइगर फोर्स सहित कई संगठन भी इस पर काम कर रहे हैं।
बाघ संरक्षण के लिए और अधिक ठोस उपायों की आवश्यकता
ये टीमें वन विभाग के अधीन काम करती हैं। हालाँकि, बाघों की मौत की संख्या कम नहीं हो रही है। अब सवाल यह है कि बाघों की मौतों का यह सिलसिला कब रुकेगा? क्या राज्य का वन्यजीव संरक्षण केवल आंकड़ों तक ही सीमित है? लोगों का कहना है कि बाघों की सुरक्षा के लिए अब और ठोस कदम उठाए जाने का समय आ गया है।