इन्वर्टर बनाम नॉन-इन्वर्टर एसी: कौन सा है आपके लिए बेहतर विकल्प?

इन्वर्टर बनाम नॉन-इन्वर्टर एसी: कौन सा है आपके लिए बेहतर विकल्प?
इन्वर्टर बनाम नॉन-इन्वर्टर एसी: कौन सा है आपके लिए बेहतर विकल्प?

गर्मी का मौसम आते ही हर किसी के दिमाग में सबसे पहले राहत पाने का ख्याल आता है, और इसी के साथ बढ़ जाती है कूलर और एसी की मांग। मार्च और अप्रैल की शुरुआत में कूलर तो किसी हद तक चल जाते हैं, लेकिन जैसे-जैसे तापमान अपने चरम की ओर बढ़ता है, एसी की जरूरत महसूस होने लगती है। ऐसे में अगर आप इस बार नया एसी खरीदने का मन बना रहे हैं, तो यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि कौन सा एसी आपके लिए सही रहेगा—इन्वर्टर या नॉन-इन्वर्टर।

अक्सर लोगों के मन में यह भ्रम होता है कि इन्वर्टर एसी का मतलब वो एसी होता है जो घरेलू इन्वर्टर पर चल सकता है। लेकिन यह पूरी तरह गलतफहमी है। दरअसल, “इन्वर्टर” शब्द एक खास तकनीक को दर्शाता है जो एसी के कंप्रेसर के काम करने के तरीके को प्रभावित करता है।

एसी खरीदते वक्त उसके कूलिंग परफॉर्मेंस और बिजली की खपत को ध्यान में रखना बेहद जरूरी है। अगर गलत एसी चुन लिया, तो न सिर्फ आपको कूलिंग में समझौता करना पड़ेगा, बल्कि बिजली का बिल भी आपकी जेब पर भारी पड़ सकता है। बाजार में दो प्रमुख तरह के एसी उपलब्ध हैं: इन्वर्टर एसी और नॉन-इन्वर्टर एसी। तो चलिए समझते हैं इन दोनों के बीच का अंतर और ये भी कि आपके लिए कौन सा एसी बेहतर रहेगा।

इन्वर्टर एसी क्या होता है?

इन्वर्टर एसी एक आधुनिक तकनीक से लैस होता है जो कंप्रेसर की स्पीड को जरूरत के हिसाब से घटाता-बढ़ाता है। जब आप इन्वर्टर एसी चालू करते हैं, तो यह कमरे को जल्दी ठंडा करता है। जैसे ही कमरा तय तापमान पर पहुंचता है, कंप्रेसर बंद नहीं होता बल्कि धीमी गति से काम करता रहता है। इसका फायदा ये होता है कि कमरे का तापमान स्थिर बना रहता है और कूलिंग में कोई रुकावट नहीं आती।

इन्वर्टर तकनीक इस तरह से डिजाइन की गई होती है कि यह बिजली की खपत को भी कम कर देती है। कंप्रेसर का बार-बार चालू और बंद होना न होने के कारण ऊर्जा की बचत होती है। इसलिए, इन्वर्टर एसी लंबे समय तक चलाने पर आपको बिजली के बिल में काफी राहत दे सकता है।

इसके अलावा, इन्वर्टर एसी आमतौर पर कम शोर करते हैं और वातावरण के हिसाब से खुद को एडजस्ट कर लेते हैं। अगर आप एक बार में ज्यादा पैसे खर्च कर सकते हैं, तो यह एसी एक बेहतर निवेश साबित हो सकता है।

नॉन-इन्वर्टर एसी क्या होता है?

नॉन-इन्वर्टर एसी में कंप्रेसर पूरी क्षमता से काम करता है और जब तापमान सेट पॉइंट पर पहुंचता है, तो पूरी तरह बंद हो जाता है। जैसे ही कमरे का तापमान दोबारा बढ़ता है, कंप्रेसर फिर से चालू होता है। यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती है, जिससे बिजली की खपत ज्यादा होती है और साथ ही कमरे का तापमान भी स्थिर नहीं रहता।

इस तरह के एसी की शुरुआती कीमत कम होती है, इसलिए बहुत से लोग इसे चुनते हैं। लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि यह लंबे समय में बिजली के बिल को बढ़ा सकता है और लगातार ऑन-ऑफ की प्रक्रिया के चलते इसकी कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है।

नॉन-इन्वर्टर एसी का उपयोग तब समझदारी भरा होता है जब आप एसी का इस्तेमाल कम समय के लिए करते हैं या फिर आपके पास बजट सीमित है। हालांकि, अगर आप दिनभर एसी चलाते हैं, तो यह आपके लिए ज्यादा महंगा सौदा बन सकता है।

कूलिंग में कौन बेहतर है?

अगर बात कूलिंग की करें तो इन्वर्टर एसी ज्यादा असरदार साबित होते हैं। ये लगातार ठंडी हवा प्रदान करते हैं जिससे कमरे का तापमान स्थिर बना रहता है। वहीं नॉन-इन्वर्टर एसी की कूलिंग शुरुआत में तेज होती है, लेकिन बार-बार बंद और चालू होने की वजह से तापमान में उतार-चढ़ाव बना रहता है।

इसलिए अगर आप एक ऐसा एसी चाहते हैं जो न सिर्फ अच्छी कूलिंग करे, बल्कि बिजली का बिल भी कम रखे और आरामदायक अनुभव दे, तो इन्वर्टर एसी सबसे सही विकल्प होगा।

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