सुप्रीम कोर्ट आज से नए वक्फ अधिनियम के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर रहा है। न्यायालय में 73 याचिकाएं दायर की गई हैं और बताया जा रहा है कि आज 10 याचिकाएं सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की गई हैं। इस कानून की संवैधानिक वैधता को अदालत में चुनौती दी गई है। याचिकाओं में दावा किया गया है कि संशोधित कानून के तहत वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन असामान्य तरीके से किया जाएगा और यह कानून मुसलमानों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई दोपहर 2 बजे निर्धारित है, जहां न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की तीन न्यायाधीशों की पीठ याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
यहां यह उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में वक्फ अधिनियम में संशोधन किया है, जिसे पहले संसद के दोनों सदनों में विधेयक के रूप में पेश किया गया था और पारित होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद यह कानून के रूप में लागू हो गया। इस कानून के खिलाफ कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए और बंगाल में तो विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया।
वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ दायर याचिकाओं में कई मुद्दे उठाए गए हैं। आवेदनों में कुछ बिंदुओं पर विशेष जोर दिया गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि संशोधन के तहत वक्फ बोर्डों के चुनावी ढांचे को समाप्त कर दिया गया है। नये संशोधन के तहत अब गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्डों में नियुक्त किया जा सकेगा, जिसके बारे में दावा किया जा रहा है कि इससे मुस्लिम समुदाय के स्वशासन और उनकी धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन पर असर पड़ सकता है।
अधिनियम के तहत कार्यकारी अधिकारियों को वक्फ संपत्तियों पर अधिक नियंत्रण प्राप्त होगा। इससे यह चिंता पैदा हो गई है कि भविष्य में सरकार वक्फ संपत्तियों पर मनमाने आदेश जारी कर उन्हें अपने हाथों में ले सकती है।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह अधिनियम अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों को वक्फ बनाने से रोकता है, जिससे उनके मौलिक अधिकार प्रभावित होंगे। अधिनियम में वक्फ की परिभाषा बदल दी गई है, जिससे उपयोगकर्ताओं द्वारा वक्फ की न्यायिक परंपरा समाप्त हो गई है। इससे वक्फ की सुरक्षा के लिए बनाए गए नियम कमजोर हो सकते हैं।
याचिकाओं में दावा किया गया है कि कई मामलों में यह डर है कि नये नियमों के कारण सदियों पुरानी वक्फ संपत्तियों को नुकसान हो सकता है, जिन्हें मौखिक या अनौपचारिक रूप से स्थापित किया गया था। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक अधिकारों को कमजोर करने का प्रयास है।
चुनौती किसने उठाई है
? देश भर के कई राजनीतिक दलों ने वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। मुख्य याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, सीपीआई, वाईएसआरसीपी सहित कई पार्टियां शामिल हैं। इसके साथ ही अभिनेता विजय की पार्टी टीवीके, राजद, जेडीयू, एआईएमआईएम और आप जैसी पार्टियों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं।
इसके अलावा दो हिंदू पक्षों ने भी अर्जी दाखिल की है। वकील हरि शंकर जैन ने याचिका दायर कर दावा किया है कि अधिनियम की कुछ धाराओं के कारण सरकारी संपत्तियों और हिंदू धार्मिक स्थलों पर अवैध कब्जे हो सकते हैं। नोएडा निवासी पारुल खेड़ा ने भी एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने भी इसी तरह की दलीलें दी हैं।
समस्त केरल जमीयतुल उलमा, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलमा-ए-हिंद जैसे धार्मिक संगठनों ने भी इस कानून के खिलाफ याचिकाएं दायर की हैं। इस मामले में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी का भी महत्वपूर्ण योगदान है।
याचिकाकर्ता बनाम केंद्र सरकार
जहां याचिकाकर्ता इस कानून के खिलाफ हैं। वहां, केंद्र सरकार इसे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक साधन मानती है। सरकार का कहना है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को बेहतर बनाने और भ्रष्टाचार की संभावना को कम करने के लिए यह शोध महत्वपूर्ण है। इससे प्रशासन में सुधार होगा और वक्फ संपत्तियों का उचित प्रबंधन संभव होगा।
इसके अलावा सात राज्यों ने भी इस कानून के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप करने की अपील की है। इन राज्यों का तर्क है कि यह अधिनियम संवैधानिक, गैर-भेदभावपूर्ण तथा अच्छे प्रशासनिक शासन के लिए आवश्यक है।
केंद्र सरकार ने भी न्यायालय में कैविएट दाखिल किया है। कैविएट एक प्रकार का कानूनी नोटिस है, जिसे दाखिल करने से यह सुनिश्चित हो जाता है कि आदेश पारित होने पर उनका पक्ष भी सुना जाएगा। इसका मतलब यह है कि केंद्र सरकार कानून में किए गए संशोधनों पर पूरी तरह अड़ी हुई है। अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर क्या रुख अपनाता है।