सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी और विधानसभा अध्यक्ष को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि ‘अगर संविधान का मजाक उड़ाया गया तो सुप्रीम कोर्ट चुप नहीं रहेगा।’ तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष ने तर्क दिया कि ‘अदालत अध्यक्ष को उन विधायकों की अयोग्यता पर निर्णय लेने का आदेश नहीं दे सकती जो कथित रूप से दलबदल कर किसी अन्य पार्टी में जा रहे हैं।’ इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘संविधान के संरक्षक के रूप में हम आदेश पारित करने में शक्तिहीन नहीं हैं, खासकर तब जब दलबदल विरोधी कानून से संबंधित दसवीं अनुसूची का मजाक उड़ाया जा रहा हो।’
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए.रेवंत रेड्डी द्वारा विधानसभा में दिए गए कथित बयान पर भी आपत्ति जताई कि ‘कोई उपचुनाव नहीं होगा।’ न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘अगर सदन में यह कहा गया है, तो आपके मुख्यमंत्री दसवीं सूची का मजाक उड़ा रहे हैं। संविधान की दसवीं अनुसूची दलबदल के आधार पर अयोग्यता के प्रावधानों से संबंधित है।
यह सुनवाई दलबदल से संबंधित एक याचिका पर हो रही थी।
पीठ तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष द्वारा अनुचित अनुबंधों की मांग करने वाली याचिकाओं पर निर्णय लेने में कथित देरी से संबंधित दलीलों पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान अदालत ने विधानसभा अध्यक्ष से पूछा कि उन्होंने कांग्रेस में शामिल हुए भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के विधायकों की अयोग्यता से संबंधित याचिकाओं पर नोटिस जारी करने में लगभग 10 महीने क्यों लगाए। इस पर विधानसभा अध्यक्ष ने दलील दी कि अदालत दलबदल के मामले में विधायकों की अयोग्यता पर फैसला लेने का आदेश अध्यक्ष को नहीं दे सकती।
उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई।
एक याचिका में तीन विधायकों ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के नवंबर 2024 के आदेश को चुनौती दी है, जबकि एक अन्य याचिका दलबदल करने वाले शेष सात विधायकों के संबंध में दायर की गई है। पिछले साल नवंबर में हाईकोर्ट की एक पीठ ने कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष को तीनों विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर उचित समय के भीतर फैसला करना चाहिए। पीठ का यह निर्णय एकल न्यायाधीश के 9 सितंबर, 2024 के आदेश के खिलाफ अपील पर आया।
एकल न्यायाधीश ने तेलंगाना विधानसभा सचिव को आदेश दिया कि वे अयोग्यता की मांग वाली याचिका को सुनवाई के लिए चार सप्ताह के भीतर अध्यक्ष के समक्ष प्रस्तुत करें। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, “अगर राष्ट्रपति कोई कार्रवाई नहीं करते हैं, तो क्या इस देश की अदालतें, जिनके पास संविधान के संरक्षक के रूप में न केवल शक्ति है, बल्कि जिम्मेदारी भी है, शक्तिहीन हो जाएंगी?”
मुकुल रोहतगी की दलील से सुप्रीम कोर्ट हैरान
सर्वोच्च न्यायालय ने अध्यक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी की उस दलील पर भी आश्चर्य व्यक्त किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि न्यायालय अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिए आदेश जारी नहीं कर सकता और कोई समय सीमा तय नहीं कर सकता। रोहतगी ने तर्क दिया कि अध्यक्ष के समक्ष लंबित अयोग्यता याचिकाएं न्यायिक समीक्षा से परे हैं। उन्होंने कहा, ‘अध्यक्ष द्वारा निर्णय लिये जाने से पहले न्यायिक समीक्षा की अनुमति नहीं है। अदालत इस मामले में अध्यक्ष से अनुरोध कर सकती है।
मुकुल रोहतगी ने कहा कि अयोग्यता संबंधी पहली अर्जी 18 मार्च 2024 को दायर की गई थी, जिसके बाद पिछले साल क्रमश: 2 अप्रैल और 8 अप्रैल को दो अन्य अर्जी दायर की गईं। सर्वोच्च न्यायालय में पहली याचिका पिछले वर्ष 10 अप्रैल को दायर की गई थी। जब पीठ ने अयोग्यता याचिकाओं पर नोटिस जारी करने में लगने वाले समय के बारे में पूछा तो वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय की एकल पीठ ने मात्र चार सप्ताह के भीतर कार्यक्रम तय करने का अनुरोध किया था। मामले में बहस 3 अप्रैल को जारी रहेगी। बीआरएस नेता पी. कौशिक रेड्डी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सी ए सुंदरम ने 25 मार्च को अपनी दलील में कहा था कि ‘मूल प्रश्न यह है कि क्या किसी न्यायालय के पास यह शक्ति, अधिकार है कि वह किसी संवैधानिक अधिकारी को उसके संवैधानिक जनादेश के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य कर सके।’