बाबा साहेब को समाजवादी शब्द से एतराज क्यों था? संविधान दिवस पर जानें वो सच जो बहुत कम लोग जानते हैं
News India Live, Digital Desk : आज 6 दिसंबर है, यानी हमारे संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस। आज पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है। लेकिन, पिछले कुछ समय से देश में एक बहस बहुत गर्म है। वह बहस है संविधान की 'प्रस्तावना' (Preamble) में लिखे दो शब्दों को लेकर 'सोशलिस्ट' (Socialist) और 'सेक्युलर' (Secular)।
कई बार लोग सवाल उठाते हैं कि क्या ये शब्द शुरू से हमारे संविधान में थे? अगर नहीं, तो बाबा साहेब ने इन्हें उस वक्त क्यों नहीं डाला? और बाद में ये कैसे जुड़े?
आज बाबा साहेब को याद करते हुए, आइए आसान भाषा में जानते हैं कि इन शब्दों पर उनकी असल सोच क्या थी।
बाबा साहेब को 'सोशलिस्ट' शब्द से क्यों थी दिक्कत?
अक्सर लोगों को लगता है कि शायद अंबेडकर पूंजीवाद के समर्थक थे, इसलिए उन्होंने 'समाजवाद' का विरोध किया होगा। लेकिन सच्चाई इसके बिल्कुल उलट है। बाबा साहेब दिल से समाजवादी थे और गरीबों की बराबरी चाहते थे।
फिर भी, 15 नवंबर 1948 को संविधान सभा की बहस के दौरान जब प्रोफेसर के.टी. शाह ने प्रस्तावना में 'सेक्युलर, फेडरल, और सोशलिस्ट' शब्द जोड़ने का प्रस्ताव रखा, तो अंबेडकर ने इसे सिरे से खारिज कर दिया।
उनका तर्क बहुत दमदार था:
बाबा साहेब का मानना था कि संविधान का काम यह तय करना है कि सरकार 'कैसे' बनेगी (लोकतंत्र से)। लेकिन संविधान को यह तय नहीं करना चाहिए कि सरकार 'कैसी' होनी चाहिए (पूंजीवादी या समाजवादी)।
उन्होंने कहा था, "हमें आज ही यह तय करके आने वाली पीढ़ियों के हाथ नहीं बांधने चाहिए। हो सकता है भविष्य में लोग समाजवाद से भी बेहतर कोई सिस्टम ढूंढ लें। लोकतंत्र में लोगों को यह आज़ादी होनी चाहिए कि वो अपनी अर्थव्यवस्था कैसी रखना चाहते हैं।" यानी, वो लोकतंत्र को सबसे ऊपर रखते थे, न कि किसी 'वाद' को।
'सेक्युलर' पर वो क्या सोचते थे?
मजे की बात यह है कि 'सेक्युलर' (धर्मनिरपेक्ष) शब्द पर बाबा साहेब ने 'समाजवाद' जैसा कड़ा विरोध नहीं किया, लेकिन वे इस शब्द को प्रस्तावना में लिखने के बहुत इच्छुक भी नहीं थे।
क्यों? क्योंकि उनका मानना था कि संविधान के अंदर जो मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) दिए गए हैं, जैसे अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता), वे पहले ही भारत को एक सेक्युलर देश बनाते हैं। उन्हें लगा कि अलग से 'सेक्युलर' लेबल चिपकाना बस एक दिखावा हो सकता है, जब आत्मा पहले से ही सेक्युलर है।
तो फिर ये शब्द जुड़े कब?
अगर बाबा साहेब ने मना कर दिया था, तो आज हमारी किताबों में ये शब्द कहां से आए?
ये शब्द 1950 में नहीं, बल्कि 1976 में जोड़े गए। उस वक्त देश में इमरजेंसी (आपातकाल) लगी हुई थी और इंदिरा गांधी की सरकार थी। 42वें संविधान संशोधन के जरिए प्रस्तावना में 'संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य' की जगह 'संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य' कर दिया गया।
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