
वाराणसी: भारत संतों और महात्माओं की भूमि है, जहाँ कई ऐसे सिद्ध पुरुष हुए जिनकी जीवन गाथाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। ऐसे ही एक महान संत थे बाबा कीनाराम, जिन्हें अघोर परंपरा का प्रणेता और स्वयं भगवान शिव का अवतार माना जाता है। उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में जन्मे बाबा कीनाराम की कहानी चमत्कारों और आध्यात्मिक शक्ति से भरी हुई है।
जन्म और बचपन के चमत्कार
मान्यताओं के अनुसार, बाबा कीनाराम का जन्म 1601 में चंदौली के रामगढ़ गांव में एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। कहा जाता है कि जन्म के बाद वह तीन दिनों तक बिल्कुल नहीं रोए, जिससे परिवार चिंतित हो गया। जब महिलाएं उन्हें लेकर रोने लगीं, तो बालक कीनाराम ने अचानक कहा, “लोग क्यों रो रहे हैं?” यह सुनकर सभी हैरान रह गए। इसी घटना के बाद उनका नाम कीनाराम पड़ा। उनका बचपन भी कई चमत्कारी घटनाओं से भरा रहा।
गुरु की खोज और अघोर परंपरा की स्थापना
युवावस्था में उन्होंने घर त्याग दिया और ज्ञान की खोज में निकल पड़े। उन्होंने बाबा शिवानंद को अपना पहला गुरु बनाया। इसके बाद वह भगवान दत्तात्रेय के दर्शन के लिए गिरनार पर्वत गए, जिन्होंने उन्हें काशी (वाराणसी) जाने का निर्देश दिया। काशी में उनकी मुलाकात बाबा कालूराम से हुई, जो अघोर पंथ के एक महान संत थे। बाबा कीनाराम ने उन्हें अपना गुरु माना और उन्हीं के मार्गदर्शन में अघोर साधना में सिद्धि प्राप्त की।
गुरु कालूराम के बाद बाबा कीनाराम ने ही अघोर परंपरा को आगे बढ़ाया। उन्होंने वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट के पास ‘क्रीम कुंड’ की स्थापना की, जो आज दुनिया भर के अघोरियों और श्रद्धालुओं के लिए सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। इसे अघोर परंपरा का मुख्यालय भी कहा जाता है। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों का विरोध किया और मानव सेवा को ही सबसे बड़ा धर्म बताया।
कहा जाता है कि बाबा कीनाराम 170 वर्ष तक जीवित रहे और अपनी शक्तियों से अनगिनत लोगों का उद्धार किया। उनकी कहानियां आज भी वाराणसी और उसके आसपास के क्षेत्रों में बड़ी श्रद्धा के साथ सुनाई जाती हैं।