भारत की जन्म दर ऐतिहासिक निचले स्तर पर, भविष्य के लिए इसका क्या है मतलब?

भारत की जन्म दर ऐतिहासिक निचले स्तर पर, भविष्य के लिए इसका क्या है मतलब?
भारत की जन्म दर ऐतिहासिक निचले स्तर पर, भविष्य के लिए इसका क्या है मतलब?

भारत, जो कभी दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ती आबादी वाले देशों में से एक माना जाता था, अब एक ऐसे ऐतिहासिक मोड़ पर पहुँच गया है जहाँ उसकी कुल प्रजनन दर (TFR – Total Fertility Rate) रिकॉर्ड निचले स्तर 2.0 पर आ गई है। इसका सीधा मतलब यह है कि अब भारत उस ‘रिप्लेसमेंट लेवल’ (प्रतिस्थापन स्तर) से भी नीचे आ गया है, जो किसी जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने के लिए ज़रूरी होता है। प्रतिस्थापन स्तर आमतौर पर 2.1 माना जाता है, यानी जब एक महिला अपने जीवनकाल में औसतन 2.1 बच्चों को जन्म देती है, तब जनसंख्या न घटती है और न बढ़ती है।

यह आंकड़ा एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है। दशकों से चले आ रहे उच्च जन्म दर के विपरीत, अब भारत की आबादी की वृद्धि दर धीमी पड़ रही है और भविष्य में यह घटने भी लग सकती है। इस गिरावट के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं, जिनमें सबसे प्रमुख हैं:

  • बेहतर परिवार नियोजन: लोगों के बीच परिवार नियोजन के तरीकों और गर्भनिरोधकों की पहुंच और स्वीकार्यता बढ़ी है।

  • महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण: महिलाओं की शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार से उन्हें अपनी प्रजनन क्षमता पर बेहतर नियंत्रण मिल रहा है और वे शादी व बच्चे पैदा करने के फैसले देर से ले रही हैं।

  • जागरूकता और स्वास्थ्य सुविधाएं: परिवार नियोजन और प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में बढ़ती जागरूकता और बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं भी इसमें सहायक हैं।

  • शहरीकरण और जीवनशैली में बदलाव: शहरीकरण के कारण छोटे परिवार की प्रवृत्ति बढ़ी है, जहाँ कम बच्चों का पालन-पोषण करना आसान माना जाता है।

तो भारत के भविष्य के लिए इसका क्या मतलब है?

इस जनसांख्यिकीय बदलाव के दो प्रमुख पहलू हैं – कुछ फायदे और कुछ चुनौतियाँ।

संभावित फायदे:

  • संसाधनों पर दबाव कम: घटती जन्म दर का मतलब है कि सीमित प्राकृतिक संसाधनों, जैसे पानी, भोजन और भूमि पर आबादी का दबाव कम होगा।

  • जीवन स्तर में सुधार: प्रति व्यक्ति आय बढ़ सकती है और शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे जैसी सुविधाओं में सुधार आ सकता है, क्योंकि संसाधनों को कम लोगों में बांटना होगा।

  • ‘डेमोग्राफिक डिविडेंड’ का अवसर: यह एक स्वर्णिम अवसर हो सकता है, क्योंकि अब भारत की कामकाजी उम्र (working-age) की आबादी का अनुपात कुल जनसंख्या में बढ़ रहा है और आश्रितों (बच्चों और बुजुर्गों) का अनुपात कम हो रहा है। यदि इस कार्यबल को सही अवसर और कौशल दिए जाएँ, तो यह देश की आर्थिक वृद्धि को नई गति दे सकता है।

संभावित चुनौतियाँ:

  • बढ़ती बुजुर्ग आबादी: कम जन्म दर का एक सीधा परिणाम है बुजुर्ग आबादी का बढ़ना। भविष्य में युवाओं की संख्या कम होगी और बुजुर्गों की संख्या अधिक होगी, जिससे उन पर पेंशन, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने का बोझ बढ़ जाएगा।

  • कार्यबल में कमी: अगर ये रुझान जारी रहते हैं, तो लंबी अवधि में देश को श्रम बल की कमी का सामना करना पड़ सकता है, जिससे आर्थिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

  • लिंग असंतुलन: यदि ‘बेटे की चाह’ जैसी पुरानी प्रवृत्तियाँ जारी रहती हैं और जन्म दर घटती है, तो भविष्य में लिंग अनुपात और बिगड़ सकता है, जिसके गंभीर सामाजिक परिणाम हो सकते हैं।

यह दर्शाता है कि भारत जनसंख्या के मामले में विकसित देशों द्वारा अपनाए गए मार्ग पर है, जहाँ TFR में गिरावट एक आम बात है। भारत के लिए यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जहाँ रणनीतिक योजना और नीतियों के ज़रिए इस बदलाव को बेहतर ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है, ताकि देश अपने ‘डेमोग्राफिक डिविडेंड’ का अधिकतम लाभ उठा सके और आने वाली चुनौतियों का सामना कर सके।