आरजी कर विवाद: नागरिक आंदोलन के बावजूद तृणमूल का विजय रथ बरकरार

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कोलकाता, 23 नवंबर (हि.स.)। पश्चिम बंगाल की छह विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों के नतीजे आ चुके हैं, और तृणमूल कांग्रेस ने एक बार फिर अपनी पकड़ मजबूत साबित की है। हालांकि, आर.जी कर मेडिकल कॉलेज मामले को लेकर राज्यभर में हुए व्यापक नागरिक आंदोलन ने तृणमूल सरकार के खिलाफ तीखे स्वर उठाए थे, लेकिन चुनावी नतीजों पर इसका कोई प्रभाव नहीं दिखा।

नैहाटी और मेदिनीपुर जैसी शहरी सीटों पर तृणमूल कांग्रेस ने भारी मतों से जीत दर्ज की। नैहाटी, जो कि कोलकाता के करीब है और आरजी कर कांड की घटना स्थल से महज 15 किलोमीटर दूर है, वहां भी विपक्ष कोई खास प्रभाव नहीं डाल पाया। नैहाटी में 2021 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल ने 19 हजार वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। इस उपचुनाव में यह अंतर बढ़कर 50 हजार हो गया।

दूसरी ओर, मेदिनीपुर में 2021 में तृणमूल की जून मालिया ने 24 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में यह बढ़त घटकर दो हजार वोट रह गई थी। लेकिन इस उपचुनाव में तृणमूल ने बढ़त को 33 हजार तक पहुंचा दिया।

आर.जी. कर विवाद पर हुए आंदोलन में सबसे ज्यादा सक्रिय वामपंथी दल रहे, लेकिन दोनों प्रमुख सीटों पर उनका प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। वाम दलों को अपनी जमानत तक गंवानी पड़ी। वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने भी आर.जी. कर विवाद को लेकर तृणमूल पर तीखा हमला किया था। विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने आंदोलन को “ममता बनर्जी के इस्तीफे” की मांग तक सीमित कर दिया, लेकिन जनता ने इसे चुनावी नतीजों में बदलने का कोई संकेत नहीं दिया।

तृणमूल की मजबूत पकड़

राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि तृणमूल कांग्रेस का जनाधार सिर्फ संगठन तक सीमित नहीं है, बल्कि उसने राज्य में एक आर्थिक तंत्र भी खड़ा कर लिया है। सरकारी योजनाओं और भत्तों, जैसे कि लक्ष्मी भंडार, ने तृणमूल के समर्थन में बड़ा प्रभाव डाला है। वाम दलों और भाजपा के नेता भी मानते हैं कि यह “आर्थिक सुरक्षा” तृणमूल के लिए सबसे बड़ी ताकत बन गई है।

वाम दलों के नेता यह स्वीकार करते हैं कि आर.जी. कर विवाद के दौरान भले ही नागरिक आंदोलन हुआ, लेकिन इसके समानांतर कोई प्रभावी राजनीतिक आंदोलन नहीं खड़ा हो पाया। एक वाम नेता ने कहा कि ऐसे उपचुनावों में जनता सरकार बदलने के लिए वोट नहीं देती। जब बदलाव का वास्तविक अवसर आएगा, तब इसका असर दिखेगा।

इस उपचुनाव के नतीजे तृणमूल के लिए राहत की बात हैं, क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनावों में शहरी इलाकों में उसका प्रदर्शन कमजोर रहा था। आर.जी. कर आंदोलन के चलते यह आशंका थी कि यह असंतोष उपचुनाव में भी दिखेगा। लेकिन नतीजों ने यह साफ कर दिया कि तृणमूल कांग्रेस अभी भी राज्य की सबसे प्रभावी राजनीतिक ताकत बनी हुई है।

आर.जी. कर विवाद और उसके विरोध में हुए आंदोलन ने सड़कों पर भले ही हलचल पैदा की हो, लेकिन यह चुनावी राजनीति में विपक्ष के लिए किसी बड़े बदलाव का संकेत नहीं बन सका। तृणमूल कांग्रेस ने अपनी चुनावी रणनीति और जनाधार के बल पर यह साबित कर दिया है कि पश्चिम बंगाल की राजनीति में उसकी पकड़ अभी भी बेहद मजबूत है।