दुनिया में ज्यादातर लोग लंबी और अच्छी जिंदगी जीना चाहते हैं और इसके लिए वे काफी सावधानियां भी बरतते हैं। स्वास्थ्य पेशेवरों से लेकर बुजुर्गों तक स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए सलाह की एक विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध है। आपने अपने दैनिक जीवन में आहार, जीवन शैली, यात्रा और शरीर से संबंधित कई सुझाव सुने होंगे । सक्रिय रहने से अच्छी नींद लेने की भी सलाह दी जाती है। लंबी उम्र के लिए स्वस्थ रहना जरूरी है और स्वस्थ रहने के लिए फिट रहना जरूरी है। फिट रहने के लिए जीवन में संतुलन की जरूरत होती है। शारीरिक संतुलन के साथ-साथ मानसिक संतुलन भी उतना ही महत्वपूर्ण है लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि संतुलन परीक्षण से आप अपने जीवन के वर्षों का अनुमान लगा सकते हैं। आइए जानते हैं क्या है यह बैलेंस टेस्ट ।
ब्राजील में हुए एक शोध के अनुसार एक पैर पर खड़े होने का संतुलन ही बता सकता है कि इंसान कितने समय तक जीवित रह सकता है। एक शोध के मुताबिक अगर 50 साल से ज्यादा उम्र के लोग 10 सेकेंड से ज्यादा एक पैर पर खड़े नहीं रह सकते हैं तो उनके मरने की संभावना अगले 10 साल में दोगुनी हो जाती है।
यह 10 साल के शोध का परिणाम है
ब्राजील के वैज्ञानिकों ने इस पर शोध करते हुए 10 साल बिताए। इस दौरान 10 साल तक लोगों का बैलेंस टेस्ट लिया गया। शोधकर्ता यह भी समझना चाहते थे कि क्या इस संतुलन परीक्षण को लोगों की नियमित स्वास्थ्य जांच में शामिल करने की आवश्यकता है। इस शोध अध्ययन में 1,700 लोग शामिल थे। 2009 से 2022 तक उनका नियमित स्वास्थ्य परीक्षण हुआ।
1. 51 से 55 वर्ष के बीच के 5% लोग इस परीक्षा को पास नहीं कर सके।
2. 56 से 60 वर्ष की आयु के 8% लोग परीक्षण में असफल रहे।
3. 61 से 65 वर्ष की आयु के बीच के 18% लोग इस परीक्षा को पास नहीं कर सके।
4. 66 से 70 साल के 37 फीसदी लोग फेल हो गए।
5. 71 से 75 वर्ष की आयु के 54% लोग इस परीक्षा को पास नहीं कर सके।
बैलेंस टेस्ट करने का तरीका यहां बताया गया है
1. 10 सेकंड के लिए एक पैर पर खड़े रहें।
2. दाएं या बाएं पैर का इस्तेमाल किया जा सकता है।
3. आपके द्वारा उठाए गए पैर को खड़े पैर के पीछे रखें।
4. दोनों हाथों को बगल में रखें।
5. आँख के स्तर से 2 मीटर की दूरी पर देखें।
इन लोगों के मरने की संभावना ज्यादा होती है
10 साल लंबे इस शोध अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग संतुलन परीक्षण में विफल रहे, उनके जल्दी मरने की संभावना अधिक थी। मृतक के लिंग, आयु और चिकित्सा इतिहास को भी ध्यान में रखा गया था।