पटना, 06 नवंबर (हि.स.)। स्टेट हेल्थ सोसाइटी बिहार के स्वास्थ्य केंद्रों पर पैथोलॉजी सेवा के लिए खोली गई निविदा पर उठा विवाद अब पटना हाई कोर्ट पहुंच गया है। पहले से बिहार के सभी स्वास्थ्य केंद्रों में पैथोलॉजिकल टेस्ट की सेवा दे रही कंपनी पीओसीटी सर्विसेज ने पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर कर स्टेट हेल्थ सोसाइटी के टेंडर को रद्द करने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि पूरी टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी है। टेंडर की शर्तों की अनदेखी कर एक खास कंपनी को वर्क आर्डर दिया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि स्टेट हेल्थ सोसाइटी बिहार ने इस टेंडर में एल 1 आने वाली कंपनी को रेट अलग-अलग कोट करने के कारण टेंडर प्रक्रिया से बाहर कर एल 2 की कंपनी हिंदुस्तान वेलनेस को लेटर ऑफ इंटेंट जारी कर दिया है। पीओसीटी सर्विसेज ने हाई कोर्ट में हिंदुस्तान वेलनेस की तकनीकी योग्यता को चुनौती दी है और यह दावा किया है कि हिंदुस्तान वेलनेस टेंडर की शर्तों को पूरा नहीं करती। पीओसीटी सर्विसेज की याचिका नंबर सीडब्ल्यू, 25376/2024 पर सुनवाई छठ की छुट्टी के तुरंत बाद होने की संभावना है।
पीओसीटी सर्विसेज ने याचिका में कहा है कि हिंदुस्तान वेलनेस प्राइवेट लिमिटेड ( जिसे निविदा मूल्यांकन प्रक्रिया में एल 2 के रूप में वर्गीकृत किया गया है) के पास प्रतिवर्ष 20 लाख परीक्षण की अपेक्षित परीक्षण क्षमता नहीं है, जबकि निविदा दस्तावेज के खंड वी, खंड 2.4 के तहत निर्धारित शर्तों में 20 लाख परीक्षण की क्षमता होना एक प्रमुख आवश्यकता है। इस अनिवार्य क्षमता के बिना किसी भी कंपनी के लिए निविदा प्रक्रिया में आगे भाग लेना मुश्किल है। बिहार वित्तीय नियमों में उल्लिखित पात्रता मानदंडों का सख्त पालन यह सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य है कि केवल सक्षम बोलीदाताओं को ही आगे बढ़ने की अनुमति दी जाए जो निविदा की आवश्यकताओं का पूरी तरह से पालन कर सकते हैं।
याचिका में यह भी कहा गया है कि हिंदुस्तान वेलनेस प्राइवेट लिमिटेड की बोली गैर-अनुपालन योग्य है। इसलिए इसे सफल बिडर के रूप में घोषित नहीं किया जा सकता। ऐसे बोलीदाता को निविदा प्रक्रिया में आगे बढ़ने की अनुमति का सीधा मतलब है बिहार राज्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को दी जाने वाली पैथोलॉजी सेवाओं की गुणवत्ता से खिलवाड़ करना है । उल्लेखनीय है कि 23 अक्टूबर से ही बिहार स्वास्थ्य विभाग के खुले टेंडर में गड़बड़ी का आरोप लग रहा है। इस टेंडर में भाग लेने वाले सात कंपनियों में से छह का कहना है कि स्वास्थ्य समिति ने पैथोलॉजी सर्विसेज के लिए जो वित्तीय टेंडर 23 अक्टूबर को देर शाम खोले गए थे, उनमें एल 1 आने वाली कंपनी साइंस हाउस की फाइनेंसियल बिड में काफी असमानता है।
खोले गए टेंडर में इस कंपनी ने अलग-अलग जगह पर अलग-अलग रेट डाले हैं। इस टेंडर में शामिल अन्य कंपनियों ने जब इस मुद्दे को उठाया तो स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी बगलें झांकते नजर आए और लगभग डेढ़ घंटे बाद यह कह कर सभी कंपनियों को बाहर भेज दिया कि इस मुद्दे को टेंडर कमेटी देखेगी और जो भी निर्णय होगा, उसे वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जायेगा। सबसे बड़ी अनियमितता यह नजर आई कि स्वास्थ्य विभाग ने टेंडर खुलने के बाद कार्रवाई शीट पर किसी का भी दस्तखत नहीं करवाया और अधिकारी आनन-फानन में कार्रवाई समाप्त करते नजर आए।
उल्लेखनीय है कि बिहार स्वास्थ्य समिति ने सभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर पैथोलॉजी जांच के लिए निविदा निकाली। इसकी अंतिम तिथि तीन अक्टूबर थी। एनआईटी संख्या 09/एसएचएसबी/ पैथोलॉजी सर्विसेज /2024 -25 के तहत सात कंपनियों को तकनीकी रूप से इसके लिए सक्षम पाया गया। 23 अक्टूबर को शाम पांच बजे निविदा खोली गई। इसमें साइंस हाउस कंपनी को एल 1 बताया गया।
कहा जा रहा है कि इस प्रक्रिया के दौरान निविदा में भाग लेने वाली कुछ कंपनियों के प्रतिनिधियों ने देखा कि साइंस हाउस की विड में अलग-अलग जगह अलग-अलग रेट कोट किए गए हैं। साइंस हाउस ने दो शीट पर 1 परसेंट डिस्काउंट का फिगर डाला तो एक शीट पर 77 परसेंट डिस्काउंट का। यह भी देखा गया कि विड खोलने वाले अधिकारी मैनुअली 1 परसेंट वाली शीट को 77 परसेंट करते नजर आए। जब अन्य प्रतिभागियों ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई तो सभी अधिकारी ईडी के कमरे में चले गए और लगभग एक घंटे बाद एक अधिकारी से यह कहलाया गया कि इस आपत्ति पर स्वास्थ्य समिति विचार करेगी और जो भी निर्णय होगा, उसे वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जाएगा। अधिकारियों ने लिखित आपत्ति को लेने से भी मना कर दिया। इस कारण निविदा में भाग लेने वाली कंपनियों ने ई-मेल के जरिये आपत्ति विभाग को भेजी।
बाद में खुद स्टेट हेल्थ सोसाइटी बिहार ने माना कि साइंस हाउस को लेकर दर्ज कराई गई आपत्ति सही थी और उसे निविदा प्रक्रिया से बाहर करते हुए निविदा मूल्यांकन प्रक्रिया में एल 2 के रूप में आई कंपनी हिंदुस्तान वेलनेस प्राइवेट लिमिटेड के पक्ष में पत्र जारी कर दिया। अब मामला हाई कोर्ट में है और इस टेंडर का भविष्य वहीं से तय होना है।