
News India Live, Digital Desk: The ‘deadly’ secret of Nanda Devi: क्या आप जानते हैं कि भारत के नंदा देवी पहाड़ पर आज भी अमेरिका के गुप्त ‘जासूसी ऑपरेशन’ से जुड़ा एक खतरनाक रहस्य छिपा हुआ है? हम बात कर रहे हैं एक ऐसे प्लूटोनियम कैप्सूल की जो दशकों से हिमालय की गोद में कहीं गायब है। यह कहानी शुरू हुई थी चीन पर नज़र रखने की कोशिश से और बन गई भारत के लिए एक संभावित पर्यावरण और स्वास्थ्य खतरा।
जब CIA ने हिमालय में रचा ‘गुप्त’ खेल:
साल 1965 में, अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA (सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी) ने भारत की खुफिया एजेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के साथ मिलकर एक बेहद सीक्रेट ऑपरेशन को अंजाम दिया था। इसका मकसद था चीन के परमाणु परीक्षणों और मिसाइल गतिविधियों पर नज़र रखना। इसके लिए उन्होंने नंदा देवी पर्वत की चोटी पर एक ‘रिमोट सेंसिंग डेटा कलेक्शन यूनिट’ स्थापित करने की योजना बनाई। यह उपकरण परमाणु ऊर्जा से चलता था, और इसमें रेडियोधर्मी पदार्थ ‘प्लूटोनियम’ के सात कैप्सूल लगे थे, जो उपकरण को सालों तक ऊर्जा दे सकते थे।
नंदा देवी पर वो खतरनाक हादसा:
सबकुछ योजना के मुताबिक नहीं चला। बेहद ऊंचाई और विषम मौसम की चुनौती ने टीम के सदस्यों को परेशान कर दिया। नंदा देवी के ग्लेशियरों के पास अचानक आए एक भयानक बर्फीले तूफान के कारण टीम को जल्दबाजी में अपना बेस कैंप छोड़ना पड़ा। उन्हें यह डेटा कलेक्शन यूनिट (जिसमें प्लूटोनियम कैप्सूल लगे थे) उसी स्थान पर छोड़ देनी पड़ी, यह सोचकर कि वे इसे बाद में निकाल लेंगे।
लेकिन, जब टीम अगले साल 1966 में उस उपकरण को वापस लाने पहुंची, तो उन्हें वह कहीं नहीं मिला। पूरा उपकरण, जिसमें घातक प्लूटोनियम के सात कैप्सूल थे, बर्फ और ग्लेशियरों में कहीं गुम हो गया था। तब से लेकर आज तक, अथक खोज अभियानों के बावजूद, यह खतरनाक प्लूटोनियम कैप्सूल कभी नहीं मिला।
लाखों भारतीयों पर मंडराता ‘परमाणु खतरा’?
आज 50 साल से भी ज्यादा का समय बीत चुका है, लेकिन यह खोया हुआ प्लूटोनियम कैप्सूल अब भी चिंता का विषय बना हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह धीरे-धीरे गंगा नदी प्रणाली में मिल सकता है। प्लूटोनियम एक बेहद जहरीला और रेडियोधर्मी पदार्थ है। अगर यह गंगा में मिला, तो इसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। इससे जल प्रदूषण होगा, लाखों लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है, और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। उत्तराखंड के इस पवित्र स्थान से निकलने वाली गंगा नदी का पानी उत्तर भारत की एक बड़ी आबादी द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, जो इस खतरे को और गंभीर बना देता है।
यह रहस्यमय और खतरनाक प्लूटोनियम कैप्सूल आज भी हिमालय के गर्भ में छिपा एक टाइम बम बना हुआ है, जिसका समाधान किसी के पास नहीं है।