सुरजन सिंह तोमर युग-ऋषि थेः गणेश ज्ञानार्थी

इटावा,13 सितंबर(हि.स.)। विश्व विख्यात संस्कृत दिवस एवं आयुर्वेदिक चिकित्सा सम्राट स्व. (आचार्य) डा. सुरजन सिंह तोमर का आज जन्म दिन है। यह दिन 88 वोँ पत्रकारिता दिवस के रूप में लगभग दो दशक से मनाया जाता रहा है।

स्व. सुरजन सिंह जी ने संस्कृत भाषा के उत्थान और लोकप्रियता के लिए जो किया, वह देश के किसी और ने नहीं किया, जब कि संस्कृत के आचार्यों की देश में कमी नहीं है। लेकिन बिडंबना है कि यह ‘आचार्यत्व’ केवल जीवन यापन के लिए अच्छी नौकरी पाने तक सीमित है। लेकिन आचार्य तोमर ने अपनी सौम्यता, सर्वोत्तम व्यवहारिक-संपन्नता से विश्व स्तर पर ‘संस्कृत’ भाषा के साहित्य की महिमा स्थापित करने के लिए जो उत्सर्ग किया वह अदित्यीय है। संस्कृत साहित्य के वे जितने गंभीर अध्येयता थे, उससे भी कहीं ज्यादा वे आयुर्वेदिक चिकित्सा निष्णात पंडित थे। उन्होनें लगभग 120 पुस्तकें लिखीं जो देश के अनेक प्रांतो के शिक्षा विभागों द्वारा संस्कृत भाषा के विकास में योगदान कर सकती हैं।

आज संस्कृत दिवस पर उनके द्वारा स्थापित ‘दिग्वार्ता दैनिक’ की सार्थक एवं अनुकरणीय पत्रकारिता की उपलब्धियों पर ध्यान जाता है तो कहना पड़ता है कि हिन्दी की व्यवसायिक बन चुकी पत्रकारिता के बाजारूपन ने संस्कृत एवं हिंदी दोनों क्षेत्रों को मटमैला किया है।

आज संस्कृत पत्रकारिता के संबंध में उससे समग्र विस्तार की जरूरत का महत्व अत्यंत जरूरी बताते हुए वरिष्ठ पत्रकार लेखक नरेश भदौरिया ने आचार्य स्व. सुरजन सिंह तोमर को संस्कृत का ‘युग-मनीषी’ कहा। उन्होंने कहा कि स्व. आचार्य जी की संसकृत पाठ्य सामग्री अपने आप में संस्कृत की उपादेयता का मार्ग प्रशस्त करती है।

इसी क्रम में गोष्ठी को संबोधित करते हुये ‘फेस टू फेस’ मीडिया के प्रमुख रवीन्द्र सिंह चौहान एडवोकेट ने कहा कि आचार्य श्री तोमर ने संस्कृत भाषा को जन-जन कीे बोली बनाने के लिये प्रांतीय स्तर पाठ्य पुस्तकें लिखी। यह एक ऐसा काम था जो सरकारी स्तर पर किया जाना था, मगर जरूरत की अनदेखी किये जाने से, स्व. आचार्य जी ने उसे पूरा किया।

श्री चौहान ने निहायत दुख के साथ कहा कि संस्कृत के निष्णात विद्वान के तौर पर जो सम्मान सरकार को देना चाहिए था, वह नहीं दिया गया बल्कि देश के जाने-माने संस्कृत कर्मियों ने भी उनकी मेधा की उपेक्षा की।

वरिष्ठ पत्रकार गणेश ज्ञानार्थी ने फोन पर माउंट आबू (राज.) से अवगत कराया कि यहां एक राष्ट्रीय पत्रकार सम्मेलन में स्व. आचार्य सुरजन सिंह तोमर के देय की भूरि-भूरि प्रशंसा की । इस दौरान श्री गणेश ज्ञानार्थी ने आचार्य जी को चंबल घाटी का वैदिक कालीन ‘युग-ऋषि’ कहा।

गणेश ज्ञानर्थी ने आगे कहा कि प्रातः स्मरणीय डा. आचार्य सुरजन सिंह तोमर हमारी इष्टिकापुरी के राष्ट प्रसिद्ध प्रकाण्ड संस्कृत विद्वान, सम्पादक, दार्शनिक, लेखक रहे, जिन्होनें संस्कृत को पुर्नस्थापित करने में जीवन उत्सर्ग कर दिया। उनकी तमाम पुस्तकें अनंतकाल तक विभिन्न विषयों में संस्कृत शोधार्थियों का मार्ग दर्शन करती रहेंगी। उनके स्नेहाभाव से सिंचित रहे हम इटावा के लोग भाग्यशाली है, जिन्हें आजन्म उनकी कृपाओं का लाभ मिलता रहेगा। उनकी कृतियों पर व्यापक शोध की की आवश्यकता है। उनकी पुस्तकें विश्व-विद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने की दशा मानव संसाधन मंत्रालय को महती भूमिका का निर्वाह करना हैं। हम सब लोग इस दिशा में प्रयास कर संस्कृत के उत्थान के लिये मंगलकारी प्रयास कर रहे हैं। अगले समारोह तक हम सफलता के समाचार लेकर उपस्थित हो सकें। इसके लिये आप हम महानुभावों के आर्शीवाद की याचना के आकांक्षी है। सभी विद्वानों को सादर प्रणाम।

संस्कृत पत्रकारिता-दिवस का आयोजन दैनिक दिग्वार्ता के संपादक मालिक डॉ. उमेश सिंह तोमर ने घटिया अजमत अली इटावा आवास पर किया। प्रमुख वक्ताओं में आचार्य रामवीर शास्त्री, महंत हनुमान मंदिर, धौलपुर के जाने माने लघु कथाकार पुष्कर द्विवेदी, का. अनिल दीक्षित (भर्थना), भोजराज सिंह, ओशो संयासी भिण्ड ने स्वर्गीय परम वंदनीय संस्कृताचार्य सुरजन सिंह तोमर की दायित्व बोधता पर जो आदर भाव जो साथियों ने व्यक्त किये हैं, वे हमारा सर्वोत्तम है।

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