
News India Live, Digital Desk: Pitru Paksha 2025: सनातन धर्म में पितृ पक्ष का समय पितरों की शांति और उनके प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इन 15 दिनों में लोग अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, उनके लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण जैसे धार्मिक कर्मकांड करते हैं। लेकिन साल 2025 का पितृ पक्ष एक खास और चुनौतीपूर्ण संयोग लेकर आ रहा है। इस दौरान दो-दो ग्रहण पड़ेंगे – एक सूर्य ग्रहण और एक चंद्र ग्रहण, जो सभी को इस बात की चिंता में डाल रहा है कि ऐसे में पितृ कर्म कैसे किए जाएंगे।
पितृ पक्ष 2025 की शुरुआत 1 सितंबर को पूर्णिमा श्राद्ध से होगी और यह 29 सितंबर 2025 को सर्वपितृ अमावस्या के साथ समाप्त होगा। इन 15 दिनों के बीच ही दो बड़े ग्रहण घटित होंगे:
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पहला चंद्र ग्रहण: 7 सितंबर 2025 (रविवार) को होगा। यह एक उपच्छाया चंद्र ग्रहण होगा।
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सूतक काल: चंद्र ग्रहण का सूतक ग्रहण शुरू होने से 9 घंटे पहले लगता है।
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सूर्य ग्रहण: 21 सितंबर 2025 (रविवार) को होगा।
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सूतक काल: सूर्य ग्रहण का सूतक ग्रहण शुरू होने से 12 घंटे पहले लगता है।
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दूसरा चंद्र ग्रहण: 29 सितंबर 2025 (सोमवार) को होगा। यह एक आंशिक चंद्र ग्रहण होगा।
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सूतक काल: इसका सूतक भी 9 घंटे पहले ही लग जाएगा।
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सूतक काल क्या होता है और इससे क्यों बचें?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण के सूतक काल को अशुभ माना जाता है। इस दौरान कुछ भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। सूतक काल में मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, देवी-देवताओं की मूर्तियों को स्पर्श नहीं किया जाता, भोजन नहीं बनाया जाता, और न ही खाया जाता है। इस अवधि में यात्रा और नए कार्यों की शुरुआत से भी बचना चाहिए।
ग्रहण के बीच कैसे करें पितृ कर्म (श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान)?
यह सबसे बड़ा सवाल है कि अगर आपके पितृ पक्ष का कोई श्राद्ध या पिंडदान का मुहूर्त इन ग्रहणों के सूतक काल में आता है तो क्या करें। इसके लिए धर्म-ग्रंथों में स्पष्ट निर्देश हैं:
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सूतक काल में पिण्डदान और तर्पण नहीं: याद रखें, सूतक काल के दौरान पितरों के लिए पिण्डदान, तर्पण या कोई भी विशेष पितृ कार्य नहीं किया जाता है। ये कार्य पूरी तरह से वर्जित माने जाते हैं।
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विकल्प 1: सूतक शुरू होने से पहले: यदि आपके श्राद्ध की तिथि सूतक काल से पहले आती है, तो आप अपने पितृ कर्म बिना किसी बाधा के कर सकते हैं।
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विकल्प 2: सूतक समाप्त होने के बाद: यदि श्राद्ध का दिन सूतक काल में पड़ रहा है, तो आपको सूतक खत्म होने तक इंतजार करना होगा। सूतक खत्म होने और ग्रहण समाप्त होने के बाद आप अपने पितरों के लिए विधिवत श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं।
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विकल्प 3: केवल मानसिक जप: सूतक काल के दौरान आप भगवान के नाम का जाप या पितरों से संबंधित मंत्रों का मानसिक पाठ कर सकते हैं, लेकिन मूर्तियों को छूना या पूजा-पाठ करना मना होता है। जब सूतक और ग्रहण समाप्त हो जाए, तो स्नान करके फिर से पूर्ण विधि-विधान से पूजा और श्राद्ध कर सकते हैं।
पूर्वजों को मुक्ति और शांति प्रदान करने के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म का अत्यधिक महत्व है, इसलिए भले ही ग्रहण हों, नियमों का पालन करते हुए पितृ कर्म अवश्य करने चाहिए।