पंजाब के विपुल लेखकों में ओम प्रकाश गासो का नाम भी शामिल है उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं उपन्यास, कविता, बाल साहित्य, अनुवाद, आलोचना और गद्य आदि में लिखा है। वह पंजाब के उन चुनिंदा लेखकों में से एक हैं जो पंजाबी भाषा के साथ-साथ हिंदी भाषा में भी साहित्य रचना कर रहे हैं। उम्र के नब्बे वर्ष पूरे करने के बाद भी वे साहित्य सृजन से जुड़े हुए हैं उनके चलने की गति की तरह उनकी लिखने की गति में भी कोई अंतर नहीं आया वह न सिर्फ लिखते हैं बल्कि साहित्य का प्रचार-प्रसार भी करते रहते हैं अगर आप किसी काम से शहर जाएं तो वह कंधे पर किताबों का बैग लटकाए आपसे जरूर टकराएगा।
साहित्यिक कुटिया
अगर आप उनकी साहित्यिक झोपड़ी में जाएंगे तो वह अपने घर के बगीचे में या तो कोई किताब पढ़ते या कुछ लिखते नजर आएंगे। वह एक ऐसे लेखक हैं जो प्रकृति से प्रेम करते हैं उनकी हरी-भरी कुटिया में आपको फूलदार मौसमी और पके फलों के पौधे दिखेंगे उन्होंने शहर के कई निर्जन स्थानों पर ऐसे फूलों वाले पौधे लगाकर महका दिया है वह आपसे न सिर्फ साहित्य पर बात करेंगे बल्कि प्रदूषित पर्यावरण को लेकर अपनी चिंता भी व्यक्त करेंगे वे साहित्य सृजन को एक उपकरण के रूप में लेते हैं ओम प्रकाश गासो का जन्म 9 अप्रैल, 1933 को बरनाला में पिता मास्टर गोपाल दास और माता उत्मी देवी के घर हुआ था। जब देश आज़ाद हुआ तो गैस्सो 14 साल के थे उसने मौत को अपनी आंखों के सामने नाचते देखा अपने बचपन के दोस्तों को याद करके आज भी उनकी आंखें भर आती हैं विभाजन की त्रासदी का यह दर्द आज भी उनकी रचनाओं में झलकता है ओम प्रकाश के दो बड़े भाई जगन नाथ और कृष्ण दास सरकारी कर्मचारी बन गये परिवार के लोग ओम प्रकाश की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे उन्हें पढाई और जज़मानी प्रोहती की शिक्षाएँ सीखने के लिए हंधियाया गाँव के एक शिविर में भेजा गया था। यहीं पर उनके हाथ में उर्दू की कमान आई और उन्होंने पढ़ाई की ओर रुख किया 10वीं करने के बाद उन्होंने पीटीआई किया। वह शिक्षक बनने के योग्य हो गये और शिक्षा विभाग के कर्मचारी बन गये
‘सपने और अंत्येष्टि’
उनका पहला उपन्यास ‘सुपने ते संस्कार’ 1966 में प्रकाशित हुआ था इसके प्रकाशन के साथ ही वह मास्टर ओम प्रकाश से बरनाला शहर के पहले उपन्यासकार ओम प्रकाश गासो बन गये। स्कूल में पी.टी.आई शिक्षक के कर्तव्यों के साथ-साथ वह छात्रों को पंजाबी और हिंदी भी पढ़ाते थे नौकरी के दौरान उन्होंने पंजाबी, हिंदी विषय में एमए किया। बिना एम.फिल. तक की शिक्षा प्राप्त की आज उनके अपने परिवार में बेटों के अलावा पोते-पोतियां भी पीएच.डी. तक की शिक्षा बरनाला के साहित्यिक आंदोलन के उत्थान में गैसो का प्रमुख योगदान रहा है बरनाला की पंजाबी साहित्य सभा पंजाब की अग्रणी समितियों में से एक है वर्ष 1988 में उनकी अध्यक्षता में सभा ने प्रगतिशील विचारधारा के संदर्भ में एक राष्ट्रीय स्तर का सम्मेलन आयोजित किया। उन्होंने पंजाब के स्कूलों में 37 साल तक पढ़ाने के अलावा 7 साल तक कॉलेजों में भी पढ़ाया
छह दर्जन से अधिक पुस्तकें
छह दर्जन से अधिक पुस्तकें गैस्सो के वृत्तान्त का वर्णन करती हैं पंजाबी भाषा में 30 उपन्यासों के अलावा 20 गद्य पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं बाल साहित्य की 3 पुस्तकें, कविता की 2 पुस्तकें तथा अनुवाद एवं आलोचना की 2 पुस्तकें पाठकों को दी गई हैं। हिंदी भाषा में 5 उपन्यास और 7 काव्य संग्रहों की रचना की है उनके जीवन और कार्य पर आधारित तीन पुस्तकें हैं ‘लोक धड़कन दा तंदूर’, ‘पंजाबी संस्कृति दस्तावेज़’ और ‘ओम प्रकाश गैसो: छवि प्रतिभा’। तीसरी पुस्तक में पाठकों और लेखकों ने गैसो के बारे में विचार प्रस्तुत किये हैं गैसो की पुस्तकें ‘मित्र मंडल प्रकाशन’ द्वारा ही प्रकाशित की गई हैं उन्हें मिले सम्मानों की सूची बहुत लंबी है þ| डॉ। जसविन्दर सिंह की टिप्पणी उल्लेखनीय है, ‘गैसो के उपन्यासों का कथा संसार भी मुख्यतः मालवा के गाँवों से सम्बन्धित है। उनमें ग्रामीण जीवन के ज्वलंत दृश्य और भरपूर स्थानीय रंग हैं…’ पिछले साल उनके छोटे बेटे डॉ. हालांकि रविंदर गैसो की जुदाई से उन्हें गहरा सदमा लगा, लेकिन वह जल्द ही इससे बाहर आ गए और फिर से कलम उठा ली। शाला! इसी तरह वह नई-नई सड़कें खोदते रहे