Karnataka Politics : किस्मत में होगा तो भाई CM बनेंगे, डीके शिवकुमार को लेकर भाई सुरेश के बयान से कर्नाटक में सियासी हलचल
News India Live, Digital Desk : Karnataka Politics : कर्नाटक की राजनीति में मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रही शांत लहरों में एक बार फिर हलचल मच गई है. यह हलचल किसी और ने नहीं, बल्कि उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के भाई और कांग्रेस सांसद डी.के. सुरेश के एक बयान ने पैदा की है. उन्होंने अपने भाई के मुख्यमंत्री बनने की संभावनाओं को 'किस्मत' और 'प्रारब्ध' से जोड़कर उस पुरानी बहस को फिर से हवा दे दी है, जिसके मुताबिक राज्य में ढाई-ढाई साल का पावर-शेयरिंग फॉर्मूला तय हुआ है.
क्या कहा डी.के. सुरेश ने?
जब पत्रकारों ने डी.के. सुरेश से पूछा कि क्या उनके भाई डी.के. शिवकुमार मुख्यमंत्री बनेंगे, तो उन्होंने बहुत सधा हुआ लेकिन गहरा राजनीतिक संदेश देने वाला जवाब दिया. उन्होंने कहा, "मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि उन्हें (शिवकुमार को) एक अच्छा पद मिले. अगर उनके प्रारब्ध (किस्मत) में लिखा होगा, तो वह मुख्यमंत्री बनेंगे."
उन्होंने आगे कहा, "डी.के. शिवकुमार ने पहले भी कई पदों पर काम किया है और पार्टी को मज़बूत किया है. उनमें मुख्यमंत्री बनने की पूरी क्षमता है. अगर मौका मिलता है और उनकी किस्मत में होता है, तो वह ज़रूर बनेंगे."
क्यों है यह बयान इतना महत्वपूर्ण?
डी.के. सुरेश का यह बयान ऐसे समय में आया है जब कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर रही है. जब पिछले साल कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत से चुनाव जीता था, तब मुख्यमंत्री पद के लिए सिद्धारमैया और डी.के. शिवकुमार के बीच एक बड़ी खींचतान देखने को मिली थी. तब कांग्रेस आलाकमान ने बीच-बचाव किया था और यह फॉर्मूला तय होने की खबरें आई थीं कि पहले ढाई साल सिद्धारमैया मुख्यमंत्री रहेंगे और बाकी के ढाई साल डी.के. शिवकुमार को कमान सौंपी जाएगी.
हालांकि, इस फॉर्मूले की कभी भी आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसकी चर्चा हमेशा रही.
इस बयान के क्या हैं राजनीतिक मायने?
- मुद्दे को ज़िंदा रखना: डी.के. सुरेश ने यह बयान देकर 'पॉवर-शेयरिंग' के मुद्दे को एक बार फिर से मुख्य चर्चा में ला दिया है. यह कांग्रेस आलाकमान के लिए एक तरह का 'रिमाइंडर' भी है.
- कार्यकर्ताओं को संदेश: यह बयान शिवकुमार के समर्थकों और कार्यकर्ताओं को यह संदेश देता है कि उनके नेता अभी भी सीएम की रेस में सबसे आगे हैं और उन्हें सही समय का इंतज़ार है.
- किस्मत का ज़िक्र, एक सोची-समझी रणनीति: 'किस्मत' या 'प्रारब्ध' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके, सुरेश ने बहुत चतुराई से अपनी बात भी कह दी और किसी भी तरह के विवाद या गुटबाज़ी का आरोप लगने से भी खुद को बचा लिया. उन्होंने यह संदेश दिया कि शिवकुमार पद के लिए लड़ नहीं रहे हैं, बल्कि जब मिलना होगा, तब मिल जाएगा.
साफ़ है कि कर्नाटक में सत्ता का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो भविष्य ही बताएगा, लेकिन डी.के. सुरेश के इस एक बयान ने राज्य की शांत राजनीति में एक नई सरगर्मी ज़रूर पैदा कर दी है.
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