अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस : संस्कारों में मिला संयुक्त परिवार का आधार Special on International Family Day 15th May 15HSNL2 अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस : संस्कारों में मिला संयुक्त परिवार का आधार मेरठ, 15 मई (हि.स.)। पारिवारिक माहौल का बच्चों की सफलता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। ऐसे में संयुक्त परिवार में मिले संस्कार ही एक उत्कृष्ट परिवार का आधार तैयार करते हैं। मेरठ निवासी बैम्बी परिवार ऐसे ही संयुक्त परिवार का उदाहरण है। तीन पीढ़ियों से परिवार के सदस्य इकट्ठा रह रहे हैं और नई पीढ़ी को भी प्यार और समर्पण की सीख दे रहे हैं। मेरठ की गढ़ रोड स्थित दामोदर कॉलोनी में राजकुमार बैम्बी आयु 84 वर्ष अपने भरे-पूरे परिवार के साथ रहते हैं। लुधियाना पंजाब में जन्मे राजकुमार बैम्बी मेरठ के मवाना में आकर बस गए। मवाना चीनी मिल में फोरमैन के पद से सेवानिवृत्त हुए। राजकुमार की पत्नी कृष्णा बैम्बी श्रीराम प्राइमरी स्कूल में प्रधानाचार्य रही है। उनकी तीन पीढ़ियां साथ में रह रही है। अपने बच्चों को संस्कार में प्रेम, भाईचारा, समर्पण आदि गुण दिए। राजकुमार के बड़े बेटे शिवेंद्र बैम्बी आयु 58 वर्ष भारतीय वायुसेना से ग्रुप कैप्टन के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद अपने पिता के साथ रहते हैं। शिवेंद्र की पत्नी कविता सैनी आयु 54 वर्ष भी एक भारतीय गृहिणी की तरह घर का सारा कामकाज करती है। शिवेंद्र की बेटी इशिता बैम्बी आयु 26 वर्ष भारत से एलएलएम करने के बाद कनाडा में लॉ में डॉक्टरेट करने गई है। जबकि छोटा बेटा क्षितिज बैम्बी इस समय देहरादून के हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में एमबीबीएस तृतीय वर्ष का छात्र है। राजकुमार बैम्बी के छोटे बेटे डॉ. विश्वजीत बैम्बी आयु 49 वर्ष मेरठ के जाने-माने फिजिशियन है। एमबीबीएस, एमडी के साथ ही डिप्लोमा इन कार्डियोलॉजी है। विश्वजीत इस समय न्यूटिमा अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। विश्वजीत की पत्नी डॉ. मीना बैम्बी सीनियर रेडियोलॉजिस्ट है। उनकी बेटी पहल कक्षा दो में पढ़ती है। राजकुमार की दी हुई शिक्षा-दीक्षा का ही परिणाम है कि उनके परिवार की तीन पीढ़ी एक ही छत के नीचे रहती है। पिता परिवार के मुखिया, पिता को देते हैं अपनी कमाई डॉ. विश्वजीत बैम्बी ने बताया कि अपने पिता के दिए संस्कारों के कारण ही दोनों भाईयों का परिवार एकजुट होकर रहता है। उनकी अगली पीढ़ी भी संयुक्त परिवार की महत्ता को पहचानती है। हम दोनों भाई आज भी अपनी कमाई पिता को देते हैं। इसके बाद पिता ही पूरे परिवार का खर्च चलाते हैं। यह संस्कार हमारे बच्चों में भी आ रहे हैं। वे अपने दादा-दादी का बहुत सम्मान करते हैं। धार्मिक कार्यों में लीन रहते हैं बैम्बी अपने पिता से मिले संस्कारों के कारण ही डॉ. विश्वजीत धार्मिक कार्यों में भी लगे रहते हैं। उत्तराखंड की चार धाम यात्रा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचार डॉ. कृष्ण गोपाल की प्रेरणा से डॉ. विश्वजीत बैम्बी स्वेच्छा से बद्रीनाथ धाम में 15 दिन तक यात्रियों की स्वास्थ्य सेवा करके आए हैं। इसके साथ ही समाज में साफ-सफाई, पर्यावरण संतुलन आदि जागरूकता के लिए पहल-एक प्रयास नाम की सामाजिक संस्था का संचालन करते हैं। संस्था से जुड़े स्वयंसेवक स्वेच्छा से प्रत्येक रविवार को शहर के एक स्थान को चिन्हित करते हैं। इसके बाद वहां साफ-सफाई करके पूरे क्षेत्र को रंग देते हैं। लोगों को स्वच्छ रहने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस का महत्व प्रत्येक वर्ष 15 मई को अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन समाज के लिए परिवार के महत्व पर जोर देता है। अगर हमारा परिवार मजबूत होगा तो हमारी संस्थाएं और समुदाय भी मजबूत होंगे। संयुक्त परिवारों में बुजुर्गों का सानिध्य छोटों में संस्कारों के बीज बोता है और अनुशासन लाता है। एकल परिवारों के चलन के बाद भी संयुक्त परिवार एक पुष्प की तरह सुशोभित हो रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने की इसकी शुरूआत संयुक्त राष्ट्र संघ ने परिवारों के महत्व को याद दिलाने के लिए 1994 में प्रत्येक 15 मई को अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत की। मनाता है। परिवार ही समाज की नींव होते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ प्रत्येक वर्ष नए विषय के साथ अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाता है। 2023 के लिए अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस को मनाने की थीम ‘परिवार और जनसांख्यिकी परिवर्तन’ है। जिसका मकसद जनसंख्या में होने वाले महत्वपूर्ण बदलाव और परिवारों पर उनके प्रभाव को लेकर ध्यान केंद्रित करना है।

मेरठ :  पारिवारिक माहौल का बच्चों की सफलता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। ऐसे में संयुक्त परिवार में मिले संस्कार ही एक उत्कृष्ट परिवार का आधार तैयार करते हैं। मेरठ निवासी बैम्बी परिवार ऐसे ही संयुक्त परिवार का उदाहरण है। तीन पीढ़ियों से परिवार के सदस्य इकट्ठा रह रहे हैं और नई पीढ़ी को भी प्यार और समर्पण की सीख दे रहे हैं।

मेरठ की गढ़ रोड स्थित दामोदर कॉलोनी में राजकुमार बैम्बी आयु 84 वर्ष अपने भरे-पूरे परिवार के साथ रहते हैं। लुधियाना पंजाब में जन्मे राजकुमार बैम्बी मेरठ के मवाना में आकर बस गए। मवाना चीनी मिल में फोरमैन के पद से सेवानिवृत्त हुए। राजकुमार की पत्नी कृष्णा बैम्बी श्रीराम प्राइमरी स्कूल में प्रधानाचार्य रही है। उनकी तीन पीढ़ियां साथ में रह रही है। अपने बच्चों को संस्कार में प्रेम, भाईचारा, समर्पण आदि गुण दिए। राजकुमार के बड़े बेटे शिवेंद्र बैम्बी आयु 58 वर्ष भारतीय वायुसेना से ग्रुप कैप्टन के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद अपने पिता के साथ रहते हैं। शिवेंद्र की पत्नी कविता सैनी आयु 54 वर्ष भी एक भारतीय गृहिणी की तरह घर का सारा कामकाज करती है। शिवेंद्र की बेटी इशिता बैम्बी आयु 26 वर्ष भारत से एलएलएम करने के बाद कनाडा में लॉ में डॉक्टरेट करने गई है। जबकि छोटा बेटा क्षितिज बैम्बी इस समय देहरादून के हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में एमबीबीएस तृतीय वर्ष का छात्र है।

राजकुमार बैम्बी के छोटे बेटे डॉ. विश्वजीत बैम्बी आयु 49 वर्ष मेरठ के जाने-माने फिजिशियन है। एमबीबीएस, एमडी के साथ ही डिप्लोमा इन कार्डियोलॉजी है। विश्वजीत इस समय न्यूटिमा अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। विश्वजीत की पत्नी डॉ. मीना बैम्बी सीनियर रेडियोलॉजिस्ट है। उनकी बेटी पहल कक्षा दो में पढ़ती है। राजकुमार की दी हुई शिक्षा-दीक्षा का ही परिणाम है कि उनके परिवार की तीन पीढ़ी एक ही छत के नीचे रहती है।

पिता परिवार के मुखिया, पिता को देते हैं अपनी कमाई

डॉ. विश्वजीत बैम्बी ने बताया कि अपने पिता के दिए संस्कारों के कारण ही दोनों भाईयों का परिवार एकजुट होकर रहता है। उनकी अगली पीढ़ी भी संयुक्त परिवार की महत्ता को पहचानती है। हम दोनों भाई आज भी अपनी कमाई पिता को देते हैं। इसके बाद पिता ही पूरे परिवार का खर्च चलाते हैं। यह संस्कार हमारे बच्चों में भी आ रहे हैं। वे अपने दादा-दादी का बहुत सम्मान करते हैं।

धार्मिक कार्यों में लीन रहते हैं बैम्बी

अपने पिता से मिले संस्कारों के कारण ही डॉ. विश्वजीत धार्मिक कार्यों में भी लगे रहते हैं। उत्तराखंड की चार धाम यात्रा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचार डॉ. कृष्ण गोपाल की प्रेरणा से डॉ. विश्वजीत बैम्बी स्वेच्छा से बद्रीनाथ धाम में 15 दिन तक यात्रियों की स्वास्थ्य सेवा करके आए हैं। इसके साथ ही समाज में साफ-सफाई, पर्यावरण संतुलन आदि जागरूकता के लिए पहल-एक प्रयास नाम की सामाजिक संस्था का संचालन करते हैं। संस्था से जुड़े स्वयंसेवक स्वेच्छा से प्रत्येक रविवार को शहर के एक स्थान को चिन्हित करते हैं। इसके बाद वहां साफ-सफाई करके पूरे क्षेत्र को रंग देते हैं। लोगों को स्वच्छ रहने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस का महत्व

प्रत्येक वर्ष 15 मई को अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन समाज के लिए परिवार के महत्व पर जोर देता है। अगर हमारा परिवार मजबूत होगा तो हमारी संस्थाएं और समुदाय भी मजबूत होंगे। संयुक्त परिवारों में बुजुर्गों का सानिध्य छोटों में संस्कारों के बीज बोता है और अनुशासन लाता है। एकल परिवारों के चलन के बाद भी संयुक्त परिवार एक पुष्प की तरह सुशोभित हो रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र ने की इसकी शुरूआत

संयुक्त राष्ट्र संघ ने परिवारों के महत्व को याद दिलाने के लिए 1994 में प्रत्येक 15 मई को अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत की। मनाता है। परिवार ही समाज की नींव होते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ प्रत्येक वर्ष नए विषय के साथ अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाता है। 2023 के लिए अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस को मनाने की थीम ‘परिवार और जनसांख्यिकी परिवर्तन’ है। जिसका मकसद जनसंख्या में होने वाले महत्वपूर्ण बदलाव और परिवारों पर उनके प्रभाव को लेकर ध्यान केंद्रित करना है।

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