Harassment In Public Transports: भारत में सार्वजनिक वाहनों में सफर के दौरान 37 फीसदी लोग होते हैं परेशान, रिपोर्ट में सामने आई चौंकाने वाली जानकारी

Harassment In Public Transports: हाल ही में हुए एक सर्वे में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। सर्वेक्षण में बताया गया है कि भारत में 37 प्रतिशत नागरिकों ने विमानों, ट्रेनों और बसों सहित सार्वजनिक परिवहन से यात्रा करते समय उत्पीड़न और दुर्व्यवहार का सामना किया है। एक ‘लोकल सर्किल’ सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग 69 प्रतिशत ने महसूस किया कि जागरूकता अभियानों, चालान काटने और जुर्माना लगाने के माध्यम से ऐसी घटनाओं को कम किया जा सकता है। साथ ही 56 फीसदी लोगों ने इस सर्वे में कहा है कि उनके साथ ऐसी कोई घटना नहीं हुई.

हाल के दिनों में विमान में सवार यात्रियों द्वारा अनुचित व्यवहार की कई घटनाओं के बाद यह सर्वेक्षण किया गया। इन घटनाओं में 3 मार्च को न्यूयॉर्क से नई दिल्ली जाने वाली फ्लाइट में नशे में धुत एक छात्र का पेशाब करना और 12 मार्च को एयर इंडिया के एक फ्लाइट के शौचालय में धूम्रपान करने वाला एक यात्री शामिल है। 

इसके अलावा 7 फीसदी ने सीधे तौर पर कोई जवाब नहीं दिया. इस तरह के व्यवहार का अनुभव करने वालों में से 10 फीसदी ने स्वीकार किया कि उन्होंने पिछले तीन सालों में 4-6 बार ऐसी घटनाएं देखी या अनुभव की हैं. सर्वेक्षण से पता चला कि 16 प्रतिशत ने बताया कि ऐसी घटनाएं उनके साथ 2-3 बार हुईं और 11 प्रतिशत ने एक बार रिपोर्ट की।

सार्वजनिक परिवहन में उत्पीड़न: सर्वेक्षण में कितनी महिलाओं और पुरुषों को शामिल किया गया?

भारत के 321 जिलों के 20,000 से अधिक नागरिकों ने इस सर्वेक्षण पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। सर्वे में 66 फीसदी पुरुष और 34 फीसदी महिलाएं थीं। लोकल सर्कल्स की रिपोर्ट के अनुसार, सर्वेक्षण में भाग लेने वालों में 47 प्रतिशत टीयर 1 शहरों से, 34 प्रतिशत टीयर 2 से और 19 प्रतिशत टीयर 3 से और 4 प्रतिशत ग्रामीण जिलों से थे।

सार्वजनिक परिवहन में उत्पीड़न: 11 फीसदी लोगों का मानना ​​है कि ऐसे रूपों में कोई सुधार नहीं होगा, 

कुल 69 फीसदी लोगों ने उम्मीद जताई है कि अगर इसके बारे में जागरूकता पैदा की जाए तो स्थिति में सुधार हो सकता है. सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि 46 फीसदी को लगता है कि दंडात्मक कार्रवाई से निश्चित रूप से स्थिति में सुधार होगा। जबकि 23 फीसदी लोगों का मानना ​​है कि इसका सकारात्मक असर जरूर होगा। लेकिन 11 फीसदी लोगों की इसे लेकर नकारात्मक राय है. उनका कहना है कि जागरूकता अभियान और दंडात्मक कार्रवाई से मदद नहीं मिलेगी। 4 फीसदी लोगों ने इस बारे में अपनी स्पष्ट राय नहीं जताई है. 

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