नव वर्ष आज भारत अपना मना रहा है।
मस्तक जहां में ऊंचा अपना सदा रहा है।
बंदूक कांध पर रख हाथों में ले तिरंगा ,
सरहदों पे फौजी हरदम डटा रहा है।
जां की लगाए बाजी, होंठों पे मुस्कराहट,
हर इक युवा के दिल में जज्बा जगा रहा है।
राणा प्रताप ,सांभा, छत्र पति शिवाजी,
इन सब की शौर्य गाथा देश गा रहा है।
आते रहे भी कितने तूफान या बवंडर,
पर आसमां को छूता हौसला रहा है।
रक्खा बुलंदियों पर ,खुद को जो इसलिए ही
दुश्मन भी पांव में अब सर झुका रहा है।
हम सब रहे मनाते नव वर्ष सौ सदी से,
कायम अभी यहां यह सिलसिला रहा है।
के पी सिंह ‘विकल बहराइची’
पंतनगर उत्तराखंड