बहराइच विकास मंच ने मनाया शहीद सुखदेव की जयंती

बहराइच :  बहराइच सेनानी भवन में बहराइच विकास मंच की ओर से देशभक्त शहीद सुखदेव की जयंती पर उनके चित्र पर माल्यार्पण कर सभी ने श्रद्धासुमन अर्पित किया।

इस मौके पर संरक्षक अनिल त्रिपाठी ने कहा की सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को हुआ था। उनके पिताजी का नाम रामलाल और माताजी का नाम लल्ली देवी था। सुखदेव और भगतसिंह में प्रगाढ़ दोस्ती थी और दोनों जीवन के अंतिम क्षणों तक एक साथ रहे थे। बचपन से ही सुखदेव ने ब्रिटिश राज के अत्याचारों को समझना शुरू कर दिया था। उन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए पूरे जीवन को समर्पित किया, अंततगोत्वा अंग्रेजों ने उन्हें फांसी की सजा सुनायी और वह हंसते हुए फांसी के फंदे को चूमते हुए इस मातृभूमि की रक्षा के लिए बलिदान हो गए। उन्हें आज हमलोग एक क्रांतिकारी के तौर पर याद करते हैं।

अध्यक्ष हर्षित त्रिपाठी ने कहा कि सुखदेव पंजाब और उत्तर भारत के अन्य शहरों में क्रांतिकारी गतिविधियां सम्भालते थे। उनका जीवन देश और देशहित को पूरी तरह समर्पित था। उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में युवाओं को भारत का गौरवशाली इतिहास बताकर उनमें देश भक्ति जगाने का काम भी किया था। लाहौर में ही सुखदेव ने अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना की थी, जिसका काम देश में युवाओं को स्वतन्त्रता के महत्व को समझाना और इस दिशा में कार्य करने हेतु प्रेरित करना था। सुखदेव ने बहुत सी क्रांतिकारी क्रिया-कलापों में भाग लिया था। उन्हीं में से एक 1929 में केदियों की भूख हड़ताल भी है। जिसने ब्रिटिश सरकार की अमानवीय चेहरे को उजागर किया था।

सेनानी उत्तराधिकारी के प्रदेश महामंत्री रमेश मिश्रा ने कहा कि सुखदेव को जब ये बात पता चली कि बम ब्लास्ट करने के बाद भगत सिंह को रशीया भेजने को सोचा जा रहा है तो उन्होंने भगत सिंह को एक और मीटिंग बुलाने को कहा। दूसरी मीटिंग में ये तय किया गया कि बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह विधान सभा में बम फेकेंगे। इस तरह 8 अप्रैल 1929 को दोपहर 12.30 बजे जब नई दिल्ली की विधान सभा में सर जोर्ज चेस्टर पब्लिक सेफ्टी बिल में विशेष अधिकारों की घोषणा करने के लिए खड़े हुए। उसी वक्त भगत सिंह और दत्त ने असेम्बली में बम फेंक दिए और ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ के नारे लगाये। इस दौरान ‘गूंगों और बहरों को सुनने के लिए आवज़ ऊंची होनी चाहिए’ के पत्रक भी हवा में उछाले। उन्हें भगत सिंह और राजगुरु के साथ 23 मार्च, 1931 को फांसी पर लटका दिया गया।

इस मौके पर शिव प्रकाश तिवारी, केदार नाथ शुक्ला, रवि, राम रूप मिश्रा, सुधाकर मिश्रा, राजन यादव, आदित्य भान सिंह, वीरेंद्र बाल्मीकि समेत अन्य लोग उपस्थित रहे। मंच संचालन अजय त्रिपाठी ने किया।

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