
प्रयागराज: लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर देश में चल रही बहस के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप भारतीय मध्यम वर्ग की सामाजिक नैतिकता और मूल्यों के खिलाफ है। अदालत ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि ऐसे रिश्ते विवाह जैसी पवित्र संस्था के लिए खतरा बन रहे हैं और सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित कर रहे हैं।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी और न्यायमूर्ति मो. अजहर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने एक अंतरधार्मिक लिव-इन जोड़े द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान की।
क्या था पूरा मामला?
मामला एक मुस्लिम महिला और एक हिंदू पुरुष से जुड़ा था जो लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे थे और उन्होंने अपने परिवार वालों से सुरक्षा की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता महिला पहले से ही शादीशुदा थी और उसने अभी तक अपने पहले पति से कानूनी तौर पर तलाक नहीं लिया था।
इस तथ्य पर कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा, “क्या हम ऐसे लोगों को सुरक्षा दे सकते हैं जो एक अवैध संबंध में रह रहे हैं?” अदालत ने इस चलन को सामाजिक व्यवस्था के लिए खतरनाक बताया।
कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में क्या कहा?
पीठ ने जोर देकर कहा कि भारत में विवाह को एक पवित्र संस्कार माना जाता है, जबकि लिव-इन जैसे रिश्ते इसे चुनौती दे रहे हैं। कोर्ट ने कहा, “देश का मध्यम वर्ग ऐसे अनैतिक रिश्तों को स्वीकार नहीं कर सकता।” अदालत का मानना है कि इस तरह के संबंधों को बढ़ावा देने से समाज की पारंपरिक संरचना कमजोर हो सकती है।
हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वह लिव-इन संबंधों के खिलाफ नहीं है, लेकिन इस तरह के अवैध संबंधों (जहां एक साथी पहले से शादीशुदा हो) को कानूनी संरक्षण नहीं दिया जा सकता। इसके साथ ही, कोर्ट ने महिला पर उसके पति के साथ धोखाधड़ी करने के लिए 5,000 रुपये का जुर्माना लगाते हुए याचिका को खारिज कर दिया।