
News India Live, Digital Desk: Alarm bells for democracy : हमारी अदालतों को देखकर मन में सबसे पहले क्या आता है? इंसाफ़! और इंसाफ़ तभी मिलता है जब न्यायपालिका (Judiciary) बिना किसी दबाव या डर के काम करे, यानी वो पूरी तरह आज़ाद हो। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने न्यायाधीश, जस्टिस अभय एस. ओक ने हाल ही में एक बड़ी और गंभीर बात कही है, जो हम सबके लिए सोचने पर मजबूर करती है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की आज़ादी हमेशा कसौटी पर होती है, और इसे चुनौतियाँ सिर्फ बाहर से नहीं, बल्कि भीतर से भी मिलती हैं!
न्यायपालिका पर कौन-कौन से खतरे?
चंडीगढ़ में ‘अंतर्राष्ट्रीय वकीलों के सम्मेलन’ के समापन सत्र में बोलते हुए जस्टिस ओक ने इन चुनौतियों को समझाया। उन्होंने बताया कि ये खतरे कई रूपों में आते हैं:
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भीतरी चुनौतियां (Internal Challenges):
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खुद पर रोक (Self-Censorship): कई बार न्यायाधीश खुद ही कुछ फैसले देने से डरते हैं या अपने ऊपर अनजाने में ही कोई पाबंदी लगा लेते हैं, ताकि उन्हें किसी विवाद में न फंसना पड़े।
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हितों का टकराव (Conflicts of Interest): जब कोई न्यायाधीश किसी ऐसे मामले की सुनवाई करता है जहाँ उसके निजी हित जुड़े हों, तो ये भी न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है।
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आगे बढ़ने की इच्छा (Judicial Ambition): पदोन्नति या अच्छी पोस्टिंग की चाहत में भी कुछ जज अपने फैसलों में समझौते कर सकते हैं, जिससे उनकी आज़ादी खतरे में पड़ जाती है।
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बाहरी चुनौतियां (External Challenges):
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कार्यपालिका का दबाव (Executive Pressure): सरकारें या ताकतवर लोग अपने हिसाब से फैसले करवाने के लिए दबाव बना सकते हैं।
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मीडिया और सोशल मीडिया (Media & Social Media Influence): आजकल मीडिया और सोशल मीडिया का दबाव भी बहुत बढ़ गया है। लोग बिना पूरी जानकारी के तुरंत किसी जजमेंट पर अपनी राय बना लेते हैं और हंगामा शुरू कर देते हैं, जिससे जजों पर एक तरह का दबाव बन जाता है।
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कुछ अहम सार्वजनिक शख्सियतें (Influential Public Figures): जस्टिस ओक ने ‘विद्रोही सार्वजनिक हस्तियों’ (rebellious public figures) का जिक्र किया, जिनका शायद मतलब उन लोगों से है जो जानबूझकर अदालती फैसलों या प्रक्रिया पर सवाल उठाते हैं और जनता को भड़काने की कोशिश करते हैं।
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जनता का भरोसा क्यों है ज़रूरी?
जस्टिस ओक ने साफ कहा कि अगर न्यायपालिका अपनी आज़ादी खो देती है, तो इसका सबसे बड़ा नुकसान ‘कानून के राज’ (Rule of Law) को होता है। जब जनता को अदालत पर भरोसा ही नहीं रहेगा, तो लोग इंसाफ के लिए कहाँ जाएंगे? उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि न्यायपालिका को और भी पारदर्शी (Transparent) होना चाहिए, जैसे न्यायाधीशों की संपत्तियों का खुलासा (Disclosure of assets) होना चाहिए, ताकि जनता का भरोसा बना रहे।