साल 2024 भारत के इतिहास में सबसे गर्म साल के रूप में दर्ज किया गया। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, यह साल 1901 के बाद से सबसे गर्म साबित हुआ। इसके प्रभाव न केवल पर्यावरण बल्कि बच्चों की शिक्षा पर भी गंभीर रूप से पड़े। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में बच्चों की शिक्षा पर जलवायु संकट के विनाशकारी प्रभावों को उजागर किया है।
5 करोड़ भारतीय छात्रों पर हीटवेव का प्रभाव
यूनिसेफ की रिपोर्ट “लर्निंग इंटरप्टेड: ग्लोबल स्नैपशॉट ऑफ क्लाइमेट-रेलेटेड स्कूल डिसरप्शन्स इन 2024” के मुताबिक, भारत में लगभग 5 करोड़ छात्र गर्म हवाओं (हीटवेव) की वजह से प्रभावित हुए। दक्षिण एशिया के देशों, खासकर भारत, बांग्लादेश और कंबोडिया में, अप्रैल 2024 की भीषण हीटवेव ने शिक्षा प्रणाली को बुरी तरह बाधित किया।
भारत की संवेदनशील स्थिति
यूनिसेफ के चिल्ड्रन क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स (CCRI) में भारत को जलवायु परिवर्तन के लिहाज से अत्यधिक संवेदनशील देश बताया गया है। 163 देशों की सूची में भारत 26वें स्थान पर है।
स्कूल बंद होने का बढ़ता रिकॉर्ड
सितंबर 2024 में, जलवायु संकट के कारण 18 देशों में स्कूलों में रिकॉर्ड व्यवधान दर्ज किया गया।
- वैश्विक स्तर पर 242 मिलियन (24.2 करोड़) छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हुई।
- इनमें से 74% छात्र निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों से थे।
- दक्षिण एशिया सबसे अधिक प्रभावित रहा, जहां 128 मिलियन छात्रों की शिक्षा बाधित हुई।
- अफ्रीका में 107 मिलियन बच्चों की शिक्षा पर असर पड़ा, और 20 मिलियन बच्चे स्कूल छोड़ने की कगार पर हैं।
यूनिसेफ की चेतावनी और सुझाव
यूनिसेफ ने चेतावनी दी है कि जलवायु संकट न केवल बच्चों की शिक्षा बल्कि उनके भविष्य को भी खतरे में डाल रहा है।
- हीटवेव, बाढ़, सूखा, तूफान और चक्रवात जैसी आपदाएं शिक्षा व्यवस्था को तहस-नहस कर रही हैं।
- यूनिसेफ ने सरकारों से अपील की है कि वे शिक्षा पर जलवायु संकट के प्रभाव को कम करने के लिए ठोस रणनीतियां बनाएं।
- स्कूलों को जलवायु सहनशील बनाकर बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।
यह रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि अगर जलवायु संकट से निपटने के लिए समय रहते प्रयास नहीं किए गए, तो इसका असर कई पीढ़ियों तक महसूस किया जाएगा।