जयपुर लिटरेचर फेस्टीवल के तीसरे दिन की शुरुआत कलाकार उज्ज्वल नागर के शास्त्रीय गायन से हुई।
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का रविवार को तीसरा दिन है। प्रात:कालीन राग अहीर भैरव की गूंज के साथ ही साहित्य के कुंभ में फिर से चर्चा का दौर शुरू हुआ। दिन भर अलग-अलग विधाओं के साहित्यकार, संगीतकार, फिल्मकार अपने-अपने अंदाज में साहित्य लेखन के तरीकों और मुद्दों पर चर्चा करेंगे। दिन भर में बीस से अधिक सेशन होंगे।
रविवार की भोर तबले पर एक ताल के साथ शुरू हुए राग की बंदिश थी ‘जाग रे बंदे…’ से हुई। कलाकार थे शास्त्रीय गायक उज्ज्वल नागर। लंबे आलाप और स्वरों के उतार-चढ़ाव का जो सिलसिला चला, उसने श्रोताओं को आनंदित कर दिया। वर्चुअल चल रहे आयोजन से देश-विदेश में जुड़े तमाम सुधि श्रोताओं को कलाकार ने राग की गहराई के आनंद से अभिभूत कर दिया। यह बंदिश विलंबित में थी।

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन प्रस्तुति देते कलाकार।
उज्ज्वल नागर ने इसके बाद दु्त लय में तीनताल की रिद्म का सहारा लिया। बंदिश ‘ अलबेला सजन आयो… मंगल गावो चौक पुरावो…’ तथा एक छोटे खयाल ‘ऐ री माई सांवरो… नैनर में रच मन में बसो.. मोर मुकुट कुंडल सोय, ऐसो नंद को रावरो… ऐरी माई सांवरो..’ को भी कलाकार ने अपने प्रस्तुतिकरण का हिस्सा बनाया।