
दुनियाभर में बड़ी संख्या में लोग लंबे समय तक रहने वाले शारीरिक दर्द, जैसे पीठ दर्द, माइग्रेन या घुटनों के दर्द से जूझते हैं। एक हालिया अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जब शरीर के एक से अधिक हिस्सों में लगातार दर्द बना रहता है, तो डिप्रेशन होने की संभावना भी बढ़ जाती है। इस रिसर्च ने शारीरिक दर्द और मानसिक स्वास्थ्य के बीच गहरे संबंध को उजागर किया है।
शारीरिक दर्द और मानसिक तनाव का गहरा संबंध
येल स्कूल ऑफ मेडिसिन के रेडियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डस्टिन शीनॉस्ट ने बताया,“दर्द केवल शरीर तक सीमित नहीं होता, इसका असर सीधे मन और मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।”
अध्ययन के अनुसार, जब शरीर के कई हिस्सों में लंबे समय तक दर्द बना रहता है, तो यह व्यक्ति को मानसिक रूप से भी कमजोर बना सकता है, जिससे डिप्रेशन की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।
सूजन भी हो सकती है कारण
शरीर में होने वाली इंफ्लेमेशन (सूजन) भी दर्द और डिप्रेशन के बीच के संबंध को प्रभावित कर सकती है। एक खास सी-रिएक्टिव प्रोटीन, जो सूजन के समय लिवर में बनता है, इस संबंध को समझने में मदद कर सकता है। इससे संकेत मिलता है कि बॉडी और माइंड के बीच एक बायोलॉजिकल कनेक्शन है, जिसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।
स्टडी के आंकड़े और निष्कर्ष
- यह स्टडी यूके बायोबैंक के 4,31,000 से अधिक लोगों पर आधारित थी।
- इन लोगों को 14 साल तक फॉलो किया गया।
- दर्द को अलग-अलग हिस्सों – सिर, गर्दन, पीठ, पेट, घुटने आदि में वर्गीकृत किया गया।
- निष्कर्ष यह निकला कि शरीर के किसी भी हिस्से में लंबे समय तक रहने वाला दर्द मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है।
डिप्रेशन को सिर्फ मानसिक बीमारी न समझें
प्रो. शीनॉस्ट ने जोर देकर कहा,“हम अक्सर मानसिक स्वास्थ्य को शरीर से अलग समझते हैं, लेकिन असल में शरीर का हर अंग एक-दूसरे से जुड़ा होता है। दिल, लिवर, दिमाग – सब एक ही सिस्टम का हिस्सा हैं।”
इसलिए दर्द और डिप्रेशन को अलग-अलग नहीं देखा जाना चाहिए। दोनों को समझने और एक साथ इलाज करने की जरूरत है।
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